
-डी के शर्मा-

बिहार के एक युवक से बात हुई जो गांव में रहता है। बीए बीएड करने के बाद भी बेरोजगार है। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है लेकिन कई लोग पढ़वाने के बाद भी उसको ट्यूशन फीस नहीं देते। प्राइवेट स्कूल में अगर पढ़ाए तो तीन हजार का ऑफर देते हैं।
उसका बड़ा भाई दिल्ली में किसी घर में कुक या रसोइए का काम करता है और बीस हजार रुपया महिना पाता है। रहने और खाने की व्यवस्था उसी घर में हो जाती है।
सरकारी और प्राइवेट स्कूल के वेतन में जमीन आसमान का फर्क है, इसलिए हर बेरोजगार सरकारी नौकरी चाहता है लेकिन सरकार भी कितने लोगों को नौकरी दे सकती है।
जो लोग सड़क किनारे चाय की दुकान, चाट, पकोड़े, जलेबी आदि का ठेला लगाते हैं वो भी नौकरी करने वालों से ज्यादा कमा लेते हैं।
पढ़ाई करने के बाद भी अगर नौकरी न मिले तो बजाय घर में बैठे कुंठित होने से अच्छा ये है कि खुद का कोई काम किया जाए। यही जीवन संघर्ष है।