
-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
इन दिनों कोटा शहर के बाहरी ग्रामीण क्षेत्र में सरसों के पीले रंग के फूल खेतों में आभा बिखेर रहे हैं। लगता है जैसे छोटे-छोटे सोने के फूल खिले हैं। पहले सरसों के फूल जनवरी-फरवरी में फूलते थे। अब अगैती बुवाई सितंबर में हो जाती है और नवंबर में फूल खिलने लगते हैं।
सरसों के फूल इतने आकर्षक होते हैं कि देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। 2 से 3 फीट ऊंचे पौधे पर हरे रंग की पत्तियों के शीर्ष पर गुच्छा नुमा पीले पीले फूल हर किसी का मन मोह लेते हैं। आयुर्वेदिक दृष्टि से पीली सरसों का तेल बहुत उपयोगी माना जाता है। पीले बीज वाले को ही सरसों कहा जाता है। पहले लकड़ी के कोल्हू से तेल निकाला जाता था जो एकदम शुद्ध होता था। सरसों क्रूसीफेरी कुल का पौधा है इसका वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका कप्रेस्टिस है। यह द्विपत्तिय शाकीय एक फसली पौधा है। सरसों की पत्तियों का साग जाड़े की ऋतु में पंजाब में बहुत खाया जाता है। पंजाब में सरसों की सब्जी प्रसिद्ध है।

सरसों के पीले फूलो में कई औषधीय गुण होते हैं। जैसे कि पहले तो ये एंटीबैक्टीरियल का काम करता है और इंफेक्शन को कम करने में मदद करता है। दूसरा इसका एंटीइंफ्लेमेटी गुण सूजन को कम करने में भी मददगार है। इसके अलावा ये एंटीसेप्टीक भी है और एक डिटॉक्सीफाइंग एजेंट की तरह भी काम करता है।