जीवन की वीणा का संगीत

veena
photo courtesy adobe.com

-सुनील कुमार मिश्रा-

mishra
सुनील कुमार मिश्रा

बुद्ध के जीवन की एक घटना है☛बुद्ध के पास राजकुमार “श्रौण” दीक्षित हुआ”। भोगी था बहुत, फिर बहुत त्यागी हो गया। कहते है कभी खाली पैर जमीन पर ना चला था, पहले मखमल बिछाई जाती थी फिर जमीन पर पैर रखता था। फिर साधु हुआ☛ तो भिक्षु पगडंडी पर चलते थे तो वो कांटो से भरे रास्ते खोज कर चलता था। दूसरे भिक्षु पेड़ की छाँव मे विश्राम करते तो वो धूप मे बैठता। भिक्षु दिन मे एक बार खाते तो वो दो दिन मे एक बार खाता। ये मजा है मन का☛मन भोग छोड़ कर त्यागी हो सकता है लेकिन मन अति नही छोड़ सकता। बुद्ध से सांझ भिक्षु बताते कि “श्रौण महातपश्वी है, हम तो उसके सामने गौण है” तो बुद्ध हंसते और कहते☛तुम्हे पता नही है, बहुत भोगी रहा है वो तो महातपश्वी होना उसके लिये आसान है। राजकुमार था कुंदन सा सुंदर शरीर था 6 महीने मे उसका सारा शरीर काला पड़ गया, काया जीर्ण-शीर्ण हो गई दोनो पाँव घावों से भर गये।

एक सांझ बुद्ध श्रौण के पास गये और बोले☛श्रौण मुझे तुझसे कुछ पूँछना है क्योकि उस बाबत तू मुझसे ज्यादा जानता है। श्रौण चकित! हुआ और बोला ऐसा क्या है, जो मै आपसे ज्यादा जानता हूँ। बुद्ध बोले मैने सुना है जब तुम राजकुमार थे तो बड़े कुशल वीणा वादक थे, तो ये बताओ अगर वीणा के तार ढीले हो तो संगीत निकल सकता है। श्रौण बोला, “नही”। बुद्ध बोले और तार अधिक कसे हो तो? श्रौण बोला, “कैसी बात करते है इस स्थिति मे तो संगीत तो निकलेगा ही नही और वीणा के तार अलग टूट जायेंगे”। तो बुद्ध बोले फिर कैसे संगीत पैदा होता है? तो श्रौण बोला “ढीले और कसे तारो के बीच एक ऐसी समता की स्थिति है जहाँ तार ना अधिक कसे होते है ना ढीले वहां अंगुलियों के छूँ जाने मात्र से संगीत झनकृत हो जाता है”। फिर बुद्ध बोले… सुनो श्रौण☛जो वीणा मे संगीत के पैदा होने का नियम है, वही जीवन मे संगीत के पैदा होने का भी यही नियम है। जीवन के तार ढीले “भोग” की तरफ हो तो भी संगीत पैदा नही होता और अगर जीवन के तार विपरीत कस जाये “त्याग” की तरफ तो भी संगीत पैदा नही होता। जीवन के तारो की भी एक ऐसी अवस्था है☛ जहाँ ना तार ना ढीले होते है ना कसे । एक ऐसी अवस्था भी है जीवन मे चेतना की जहाँ “ना भोग होता है ना त्याग”। मन की दोनो ही अतियों के मध्य मे एक ऐसी अवस्था है जहाँ जब मनुष्य ठहर जाता है, तो जीवन की वीणा का परम संगीत झनकृत होता है । इसी को जीवन की परम स्थिति कहते है । यही चेतना की समाधिस्थ अवस्था है ????

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments