-शैलेश पाण्डेय-

एक दूजे के पर्याय रहे पेले, फुटबाल और ब्राजील
शैलेश पाण्डेय
फुटबाल, ब्राजील और पेले ये तीन शब्द बीसवीं शताब्दी में खेल की दुनिया में एक दूसरे के पर्याय रहे। अर्जेंटीना ने हाल ही में भले ही कतर में आयोजित विश्व कप जीत लिया हो लेकिन अनगिनत खेल दीवाने ऐसे मिलेंगे जो फुटबाल का नाम लेते ही ब्राजील और सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ फुटबालर पेले को ही अपना फेवरीट बताएंगे। मात्र 17 वर्ष की उम्र में विश्व कप खेलना और तीन विश्व कप विजेता टीम का सदस्य बनना आसमान से तारे तोड़ने से कम नहीं है। और यह कारनामा पेले जैसा कोई महामानव ही कर सकता है। बॉक्सर मोहम्मद अली से पहले पेले को ही ग्लोबल सुपर स्टार का दर्जा प्राप्त था। वह एक मात्र ऐसे खिलाड़ी थे जिनके बारे में किवदिंती प्रचलित हुईं। जब हम किशोरावस्था की दहलीज पर थे तब हॉकी और फुटबाल ही खेले जाते थे बाकि क्रिकेट, बैडमिंटन और टेनिस जैसे खेल तो अभिजात्य वर्ग और पैसे वालों के खेल थे। इन दो खेलों में भी फुटबाल ज्यादा आसान था क्योंकि इसके नियम बहुत आसान थे और इसमें केवल केवल एक बॉल की ही जरुरत होती थी और किसी भी उबड खाबड जगह भी खेली जा सकती थी। हॉकी में ध्यानचंद और फुटबाल में पेले ही हीरो थे। जहाँ ध्यानचंद के बारे में उनकी स्टिक से गेंद चिपके रहने की बात होती तो पेले की उनकी चमत्कारी किक के बारे में। इनमें कहा जाता था कि उनका गोल पोस्ट में मारा शाट कोई गोली नहीं रोक सकता था। ऐसे ही जब वह ऊँची किक लगते हैं तो बॉल दिखना बंद हो जाती है। इसके बारे में एक से एक किस्से बताने वालों की भी कमी नहीं थी।
पेले ने यक़ीनन अपने खेल कौशल से पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। े पेले ने ही दस नंबर की जर्सी को विशेष स्थान दिलाया। इससे पहले तक दस केवल एक नंबर ही था। उन्होंने ही फुटबाल को एक कला में तब्दील किया और भले ही पेले आज इस दुनिया से विदा हो गए लेकिन उनके खेल का जादू हमेशा खेल प्रेमियों के दिल और दिमाग पर छाया रहेगा। उनके क्लब सांतोस ने सही श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि फुटबाल का बादशाह भले ही अलविदा कह गया हो लेकिन उनकी विरासत को भुलाया नहीं जा सकेगा।
पेले इसलिए महानतम थे क्योंकि मैदान में वह बिल्कुल दोषरहित थे। मैदान के बाहर हमेशा मुस्कुराते और उत्साहित रहते थे। उन्हें कभी बुरा व्यवहार करते नहीं देखा। इंग्लैण्ड के महान फुटबालर सर बॉबी चार्लटन ने सही कहा था कि मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि इस जादुई खिलाड़ी के लिए ही फुटबॉल का आविष्कार किया गया था।
पेले ने 1957 से 1977 तक अपने शानदार करियर के दौरान 831 मैचों में 757 गोल किए। पेले ने 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया और 1958 में विश्व स्तर पर अपने खेल कौशल से दर्शकों को मोहना शुरू किया। केवल 17 साल की उम्र में ब्राजील को पहली बार विश्व चौम्पियन बनाने में मदद की। उन्होंने चार मैचों में छह गोल किए।
ब्राजील की 1970 की विश्व कप टीम को ऑल टाइम ग्रेट माना जाता है। इसमें एक से बढ़ कर एक दिग्गज थे लेकिन यह सभी दिग्गज केवल एक खिलाड़ी से प्रोत्साहित थे और वह खिलाड़ी था पेले। इसका कारण था पेले के खेल में कभी कोई कमी नहीं निकाल सका। वह एक मात्र ऐसे खिलाड़ी रहे जिससे कभी किसी की तुलना नहीं हुई। क्योंकि उनकी तुलना किसी से की ही नहीं जा सकी। खेल को कैसे खेला जाना चाहिए, मैदान में प्रतिद्वद्वियों का कैसे सम्मान किया जाना चाहिए वह इसके प्रतीक बन गए। पेले अपने जीवनकाल में तो हर फुटबालर और यहां तक की हर खिलाड़ी की प्रेरणा बने ही अब नहीं रहने के बावजूद भी उन लोगों की उम्मीद बने रहेंगे जो अपनी प्रतिभा और मेहनत से आसमान छूने की तमन्ना रखते हैं।