
कोटा। पिपुल्स रिसोर्स सेंटर द्वारा कोटा में शनिवार से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के पहले दिन विषय विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देशभर में बन रहे रिवर फ्रंट के कारण नदियों और इनके साथ जुडे मानव, जीव जन्तुओं के अस्तित्व और पर्यावरण पर बढ़ते खतरे को लेकर गहन चिंता व्यक्त की।
देशभर से आए विशेषज्ञों ने रिवर फ्रंट विकास और सामाजिक पारिस्थितिकीय संकट विषय पर चर्चा के दौरान अहमदाबाद के साबरमति रिवरफ्रंट से लेकर पुणे, जम्मू में तवी और कश्मीर में झेलम तथा लखनउ की गोमती नदियों और परिस्थितिकी पर गहरा रहे संकट से अवगत कराया। बूंदी रोड स्थित रिसोर्ट में आयोजित इस सेमिनार में पहले दिन प्रमुख से पुणे, लखनऊ व जम्मू, श्रीनगर में रिवर फ्रंट डवलपमेंट के संघर्ष को साझा किया गया। कोटा रिवर फ्रंट विकास की चुनौतियां, कानूनी परिस्थिति व जैव विविधता पर रविवार को चर्चा की जाएगी।
प्रथम सत्र की शुरूआत में पीपुल्स रिसोर्स सेंटर द्वारा उभरते मोर्चे और घटती नदी पर सार संग्रह का विमोचन किया गया। इस सत्र के मुख्य वक्ता डॉ नरसिम्हा रेड्डी थे। उन्होंने तथ्यपूर्ण तर्कों से सेमिनार का आधार तैयार किया। इसके बाद शरद याडवडकर, वेंकटेश दत्ता, अनमोल ओहरी, शकील उल रसूल, गौतम बंधोपाध्याय, अवली वर्मा ने पुणे से लेकर झेलम नदियों पर रिवर फ्रंट की वजह से आसन्न खतरे से अवगत कराया।
वक्ताओं ने बताया कि रिवर फ्रंट की वजह से सम्बंधित क्षेत्रों में नदियों का रास्ता बदल गया है वहीं उसके आसपास जल स़्त्रोतों में वाटर रिचार्ज नहीं हो रहा। उन्होंने बताया कि बाढ के समय नदियां अपना रास्ता तय करती थीं लेकिन रिवर फं्रट की वजह से उनके रास्ते में बाधाएं खडी हो रही हैं और इससे सामाजिक और आर्थिक नुकसान के साथ पर्यावरण को हानि पहुंच रही है। पीपीटी के माध्यम से कुछ रिवर फ्रंट से पहले की स्थिति और बाद की स्थिति का आंकलन कर हो रहे नुकसान से अवगत कराया। विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण से जोशी मठ में जिस तरह जमीन धंसने की घटनाएं हुई वैसी ही अन्य स्थानों पर भी घटनाओं की चेतावनी भी दी गई। सम्बंधित वक्ताओं ने रिवर फ्रंट से स्थानीय आबादी को होने वाले आर्थिक नुकसान और विस्थापन की चेतावनी दी। इस अवसर पर प्रत्येक सत्र के बाद मौजूद सदस्यों ने अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए वक्ताओं से सवाल जवाब भी किए।
मनू भटनागर ने कहा कि पटना में जो रिवरफ्रंट बना था वहां जिस तरह का व्यापार होता था उसी अनुरूप घाट के नाम थे जिनमें पत्थर घाट, मिर्ची घाट, अदरक घाट थे। यहां तो जो लोग इस तरह का व्यापार करते थे वो भी वहीं रहा करते थे। साबरमती में जो रिवरफ्रंट बनाया गया वो यूरोपीय पेटर्न पर तैयार किया गया। जिसने लोगों को नही से ही दूर कर दिया। अब रियल एस्टेट की तरह काम हो रहा है। जिस जीरों जोन में काम नही होना चाहिए वहां कन्ट्रक्शन करवाया जा रहा है। कोटा में भी लाईटों की जगमगाहट तो है लेकिन लोगों की आवाजाही नही है।
नरसिम्हा रेड्डी ने बताया कि देश में 10 लाख करोड़ के रिवर फ्रंट ओर बनने हैं। जो नदी के वातावरण को दूषित व नष्ट करने का काम करेंगे। समाज को आगे आकर इकोफ्रेंडली बनना होगा। तभी नदियों को बचाया जा सकता है। जयपुर में द्रव्यवती नदी में रिचार्ज के फेक्टर बन्द होते जा रहे हैं। भले ही गंगा नोटिफिकेशन आ गया हो लेकिन उसकी पालना नही की जा रही।