पिशाचमोचन श्राद्ध आज

-राजेन्द्र गुप्ता-
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पिशाचमोचन श्राद्ध के दिन पिशाच (प्रेत) योनि में गये हुए पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करने का विधान बताया गया है। 06 दिसंबर 2022 को पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाना है। इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर शांति के उपाय करने से प्रेत योनि व जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है। इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाचमोचन श्राद्ध को महत्वपुर्ण माना गया है। मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है। श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है।
पिशाचमोचन श्राद्ध का विधान
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इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है। शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए। तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखते हैं।
हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में उक्त व्यक्ति का नाम लिया जाता है जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जा रहा होता है। फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है। तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करते हें व पितर की शांति की कामना करते हैं। पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है।
पिशाच मोचन श्राद्ध का महत्व 
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पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु यदि श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करे तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं। जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है। इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है।
यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है। इसलिए इस दिन में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं। इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
राजेन्द्र गुप्ता
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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