हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य में तो गौहर जान पारंगत थी हीं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा इसलिए याद किया जाता है क्योंकि भारतीय संगीत के इतिहास में अपने गानों को रिकॉर्ड करने वाली वह पहली गायिका थीं। इतना ही नहीं, संगीत के साथ साथ ये नृत्य में भी पारंगत देश की प्रथम कलाकार थीं। रिकार्डिंग आर्टिस्ट एवं डांसिग स्टार कहा जाता था इन्हें।
-माला सिन्हा-

आज जून की 26 तारीख़। एक ऐसी अज़ीम ज़हीन फ़नकारा गौहर जान को याद करने का दिन जिनके बारे में शायद बहुत कम ही लोग जानते हों। 26 जून 1873 को जन्म लेने वाली गौहर जान जिनकी राग ‘जोगिया’ में गाई हुई पहली ठुमरी ‘हसरत भरे तोरे नैन सांवरिया’ पहली बार ब्रिटेन की ग्रामोफोन कंपनी ने सन् 1902 में रिकॉर्ड की थी जो इस कंपनी के, भारत के इतिहास में मील का पहला पत्थर साबित हुई। फ़िर तो गौहर जान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इनके गीतों के रिकार्डिंग की जिस श्रृखंला की शुरूआत ग्रामोफोन कंम्पनी ने की, वह छः साल सन् 1908 तक चली और उसकी बदौलत ही ब्रिटिश भारत में इस म्यूज़िक कंम्पनी ने लोकप्रियता की उन ऊंचाईयों को छुआ जिसनें उसके रिकार्डों को गीत संगीत के शौक़ीन लोगों के घर घर तक पहुंचा दिया।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य में तो गौहर जान पारंगत थी हीं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा इसलिए याद किया जाता है क्योंकि भारतीय संगीत के इतिहास में अपने गानों को रिकॉर्ड करने वाली वह पहली गायिका थीं। इतना ही नहीं, संगीत के साथ साथ ये नृत्य में भी पारंगत देश की प्रथम कलाकार थीं। रिकार्डिंग आर्टिस्ट एवं डांसिग स्टार कहा जाता था इन्हें।
बिहार राज्य के दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के शासन काल में नौ वर्षों (1887- 1898) तक गौहरजान दरभंगा की राज संगीतज्ञ रहीं।
1887 में गौहर जान ने दरभंगा के लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस के दरबार हॉल में महज 14 साल की उम्र में अपनी पहली प्रस्तुति दी। करीब 11 साल वो दरभंगा में रहीं, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के निधन के उपरांत 1901 में गौहर जान दरभंगा से कलकत्ता चली गयी। इन्होंने सन् 1902 से 1920 के बीच बंगाली, हिन्दुस्तानी, गुजराती, तमिल, मराठी, अरबी, पारसी, पश्तो, फ्रेंच और अंग्रेजी समेत 10 से भी ज्यादा भाषाओं में 600 से भी अधिक गाने रिकॉर्ड किए।अपनी ठुमरी, खयाल, दादरा, कजरी, चैती, भजन और तराना के जरिए हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को दूर-दूर तक पहुंचाया।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य में तो गौहर जान पारंगत थी हीं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा इसलिए याद किया जाता है क्योंकि भारतीय संगीत के इतिहास में अपने गानों को रिकॉर्ड करने वाली वह पहली गायिका थीं। ऐसा कहा जाता है कि उस जमाने में एक रिकार्डिंग के 3000 रूपये लेती थीं गौहर जान जो काफ़ी बड़ी रकम होती थी तब।
गौहर जान का जन्म पटना में हुआ था लेकिन परवरिश हुई आजमगढ़ में। उनके बचपन का नाम एंजेलिना येओवॉर्ड था। अमेरिकी इंजीनियर पिता विलियम राबर्ट और यहूदी मां विक्टोरिया हेमिंग जो भारत में ही रही थीं, उनकी इकलौती संतान , एंजेलिना के माता पिता की शादी 1872 में हुई लेकिन शादी के सात साल बाद 1879 में एंजेलिना के माता-पिता का तलाक हो गया। तलाक के बाद उनकी मां ने इस्लाम धर्म कुबूल कर खुर्शीद नामके व्यक्ति से निकाह कर लिया और मलका जान बन कर बनारस चली आईं। इसी प्रकरण में एंजेलिना भी गौहर जान हो गईं।
उस समय तक मलका जान स्थापित गायिका बन चुकी थीं। लोग उन्हें ‘बड़ी मलका जान’ के नाम से जानते थे। 1883 में मलका जान कलकत्ता में नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में नियुक्त हो गईं। यहीं पर कलकत्ता में गौहर जान की नृत्य, संगीत की बाक़ायदा तालीम शुरू हुई।
इन्होंने पटियाला के काले खान उर्फ ‘कालू उस्ताद’, रामपुर के उस्ताद वज़ीर खान और पटियाला घराने के संस्थापक उस्ताद अली बख़्श जरनैल से हिन्दुस्तानी गायन सीखा। इसके अलावा उन्होंने महान कत्थक गुरु बृंदादीन महाराज से कत्थक, सृजनबाई से ध्रुपद और चरन दास से बंगाली कीर्तन में शिक्षा ली। जल्द ही गौहर जान ने ‘हमदम’ नाम से ग़ज़लें लिखना शुरू कर दिया। यही नहीं इन्होंने रवीन्द्र संगीत में भी महारथ हासिल कर ली थी।
कलकत्ता में नृत्य और संगीत के कड़े प्रशिक्षण और उनकी अपनी मेहनत का कमाल था कि गौहर जान ने 1887 में शाही दरबार, दरभंगा राज में अपना हुनर दिखाया और उन्हें वहां बतौर संगीतकार नियुक्त कर लिया गया।
इसके बाद उन्होंने 1896 से कलकत्ता में प्रस्तुति देना शुरू कर दिया। ठसक ऐसी कि जिस रजवाड़े, रियासत से बुलावा आता, पूरा अमला लेकर पूरे तामझाम के साथ चलतीं। 101 सोने की गिन्नीयों का नज़राना पेश करने और पूरी ट्रेन बुक करने की शर्त पर बुलावा स्वीकार करती। नृत्य-संगीत के माहौल में रहते हुए भी उन्होंने अपनी मर्यादा और गरिमा का सदैव ख़याल रखा। परिस्थितिवश तवायफ़ का ठप्पा लगे होने के बावज़ूद , अपने चारो ओर प्रतिष्ठा की एक लक्ष्मण रेखा उन्होंने खींच रखी थी। कपड़े, गहनो का शौक ऐसा कि, रानियां और नवाबों की बेग़में उन पर रश्क करतीं। मज़ाल कि जिस महफ़िल में जो कपड़े, जेवरात एक बार पहन लिए वो दुबारा किसी महफ़िल में फ़िर नज़र आ जाएं।
1904-05 के दौरान गौहर जान की मुलाकात पारसी थिएटर आर्टिस्ट अमृत केशव नायक से हुई। लेकिन शादी होती उससे पहले अचानक 1907 में केशव नायक की मौत हो गई।
गौहर जान को दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में बुलाया गया, जहां उन्होंने इलाहाबाद की जानकीबाई के साथ ‘ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो मुबारक हो’ गीत गा कर अपनी प्रस्तुति दी। अपने जमाने में वो दुनिया की सबसे धनी कलाकार थी। राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी इन्होंने आर्थिक मदद के साथ अपनी भूमिका निभाई थी।
असीमित कलाओं की मलिका गौहर जान से जुड़े कई दिलचस्प किस्से भी प्रचलित हैं जिसमें उनके समकालीन एक तवायफ़ बेनज़ीर बाई से जुड़ा एक वाक्या का भी ज़िक्र होना चाहिए।
बात यूं थी कि किसी महफ़िल में गौहर जान से पहले तमाम सुंदर हीरे- मोती के जेवरातों से ख़ुद को सजा कर बेनज़ीर अपना प्रदर्शन कर चुकी थीं ।इसके बाद गौहर जान ने अपनी कला की प्रस्तुति दी और युवा रूपसी हीरों से सजी बेनज़ीर के पास जा कर व्यंग से कहा कि ‘ बेनज़ीर तुम्हारे हीरे घर में चमक सकते हैं किंतु महफ़िल में तुम्हारी कला ही चमक सकती है’।
उनकी इस बात का असर सुंदरी बेनज़ीर पर कुछ ऐसा हुआ कि वापस बंबई लौट कर उसने अपने सारे गहने, शास्त्रिय संगीत सिखाने वाले अपने गुरू को भेंट में दे दिए। और ख़ुद इस के लिए पूरी लगन से जी तोड़ मेहनत की। दुबारा फिर गौहर जान को बेनज़ीर से मिलने का मौका मिला और इस बार बेनज़ीर की कला से इतनी प्रभावित हुईं कि बेनज़ीर के पास जा कर उसे स्नेहवश कहना नहीं भूलीं कि अब तुम्हारे हीरे सचमुच चमक रहें हैं। कला की ऐसी पारखी थीं गौहर जान की निष्ठा और उनकी आलोचना।
गौहर जान की शोहरत की बुलंदी का आलम ऐसा था कि कुछ समय बाद मैसूर के महाराजा कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ के आमंत्रण पर मैसूर चली गईं। जहां के दरबार में उन्होंने अपने जीवन की आख़िरी प्रस्तुति दी । उसके 18 महीने बाद 17 जनवरी 1930 को 57 वर्ष की उम्र में मैसूर में उनका निधन हो गया। विडंबना यह रही कि ता- उम्र एक सम्मान जनक ,शान शौकत का जीवन जीने वाली इन फ़नकारा के बाद के कुछ अंतिम दिन बहुत अकेलापन और अवसाद में बीते।
दरभंगा, मैसूर एवं ब्रिटिश राजदरबार की महफ़िलों की रौनकें अपनी कला से रौशन करने वाला एक सितारा आसमान में कहीं खो गया। एक उम्दा गज़लकारा, सुर, संगीत और नृत्य की साम्राज्ञी गौहर जान को जयंती पर मेरा सादर नमन।
(26.6.1873 – 17.1.1930)
माला सिन्हा
क्या गौहर जान के गाए हुए गीत उपलब्ध हैं।
यू ट्यूब पर गौहर जान की गायी हुई राग जोगिया, भैरवी और भोपाली में गायी हुई ठुमरियाँ उपलब्ध हैं ।