shakoor anwar books

ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर
बस यही सोच के करता हूॅं ॲंधेरों का सफ़र।
चलते चलते कहीं आ जाये किसी गाम* सहर।।

*
क़ाफ़िला अब तेरा बस्ती से निकल आया है।
अब तेरी राह में जंगल है तो जंगल से गुज़र।।
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ज़ुल्म करता गया पर दिल से मुहब्बत न गई।
महरबाॅं मुझपे हुआ है वो ब अंदाज़े दिगर*।।
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वो परिंदा हूॅं कि बच बच के निकल जाता हूॅं।
मुझ पे दुनिया ने निशाने तो लगाए अक्सर।।
*
वक़्त ने आज गिराये हैं शजर* से पत्ते।
वक़्त बदलेगा तो भर जायेगा पत्तों से शजर।।
*
ज़िंदगी ने मुझे “अनवर” न कहीं का रक्खा।
गर्दिशे वक़्त* ने रक्खी है सदा मुझ पे नज़र।।
*
शकूर अनवर
गाम* क़दम, पग
ब अंदाजे दिगर*अलग ढंग से
शजर*पेड़
गर्दिशे वक्त* समय का चक्र

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