
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कारगिल से लेकर पुलवामा हमले और उसके बाद भारतीय सेना और अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों पर आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों की वीरांगनाओं को न्याय दिलाने की आड़ में उनके देवरो को सरकारी नौकरियां दिलवाने के लिए राजनीति कर रही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को राजस्थान विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल का सटीक जवाब रास नही आ रगा।
भारतीय जनता पार्टी के नेता बीते एक सप्ताह से कुछ वीरांगनाओं के साथ उनकी मांगो को लेकर अचानक सक्रिय होकर जयपुर में राजनीति कर रहे हैं और उन्हें सामने रखकर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश कर कई मांगों के अलावा यह मांग भी उठाई जा रही है कि युद्ध और आतंकी हमलों में शहीद हुए सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के पुत्रों की जगह उनके देवरों को रोजगार दे दिया जाए।
सरकारी नियमों में वीरांगनाओं के पुत्र की जगह उसके देवर को नौकरी देने का राज्य सरकार के कानून में कोई भी प्रावधान नहीं है और यह कानून उस समय भी लागू था जब राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और आज भी लागू है, बावजूद इसके वीरांगनाओं के नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेता सरकार पर दबाव बना रहे हैं लेकिन अब जब सोमवार को विधानसभा में संसदीय मंत्री शांति धारीवाल ने कड़ा प्रहार करते हुए भाजपा नेताओं को नसीहत दी कि वे बताएं कि उनके शासनकाल में उन्होंने ऐसे कितने लोगों को रोजगार दे दिया? जब नियमों में प्रावधान है ही नहीं तो पुत्र की जगह किसी देवर को कैसे सरकारी नौकरी देकर उपकृत किया जा सकता है जबकि वीरांगना राजस्थान में आम तौर पर प्रचलित नाता प्रथा के तहत अपने देवर के साथ नाते चली गई है तो कैसे दे?
अब तक इस मसले को लेकर पूरी तरह दृढ़ प्रतिज्ञ होकर आंदोलन कर रहे भाजपा के सांसद किरोड़ी लाल मीणा तो विधानसभा में हो नही सकते थे, लेकिन उनकी आवाज को विधानसभा में अपना सुर देते हुये भाजपा के उपनेता प्रतिपक्ष ने शांति धारीवाल के इस बयान का कड़ा प्रतिवाद किया और यहां तक धमकी दे रहा दे डाली कि यदि यह सिद्ध कर दिया जाए कि किसी का देवर नाते ले आया तो भी अपना इस्तीफा देने को तैयार हैजबकि यह सर्वविदित तथ्य है कि राजस्थान में प्रचलित नाता प्रथा में कहीं भी इसको लेकर कानूनी दस्तावेज रखने का कोई प्रावधान नहीं है। यह एक सामाजिक परंपरा है जिसका विभिन्न समाज अपने हिसाब से निर्वहन करते हैं।
इसके अलावा पिछले दिनों में राजस्थान ही नहीं बल्कि नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले कई समाचार पत्रों में यह रिपोर्ट सुर्खियों में छाई हुई है कि कुछ वीरांगनायें अपने देवरों के साथ सामाजिक दबाव के चलते नाते चली गई है। एक मीडिया रिपोर्ट में तो वीरांगना के ससुराल पक्ष के हवाले से यह भी कहा गया है कि यदि राज्य सरकार देवर को नौकरी दे दे तो शहीद की वीरांगना उसकी पीहर पक्ष के सदस्यों की सहमति से देवर के नाम का चूड़ा पहनने के लिए तैयार है।

यही सब तथ्य संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने राजस्थान विधानसभा में वीरांगनाओं की मांगों को लेकर की जा रही भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के उत्तर में पेश किए थे लेकिन राजेंद्र सिंह राठौड़ सरीखे नेताओं को यह जवाब रास नहीं आ रहे और खुद के इस्तीफा देने की पेशकश कर शांति धारीवाल से इस्तीफे की मांग कर रहे है जिसका कोई औचित्य नहीं है।
शांति धारीवाल ने तो विधानसभा में तथ्यों के साथ यह बात रखी है कि शहीद रोहिताश लांबा की वीरांगना अपने ऐसे देवर के पास नाते चली गई जो पहले से ही शादी शुदा है और उसके दो बच्चे है। इसके बावजूद भाजपा के नेता इन तथ्यों को ठुकरा कर इन वीरांगनाओं के नाम पर राजनीति करने को आमादा हो रहे हैं। शांति धारीवाल के इस सच्चाई को बयान करने के बाद उपनेता प्रतिपक्ष इतने उत्तेजित हुए कि वे नए नारी के सम्मान की बात करते हुए यह दावा करने लगे कि कोई भी वीरांगना अपने देवर के साथ नाते नहीं गई है और उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो यह अपना इस्तीफा देने को तैयार है तो इसके बाद शांति धारीवाल ने उन्हे बताया कि मीडिया रिपोर्ट में साफ-साफ शब्दों में छपा हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)