
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। नामीबिया से विशेष विमान से लाए गएआठ चीतो को आज मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कुनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की उपस्थिति में उनके जन्मदिन पर छोड़ा गया। यह आठ चीते नामीबिया की राजधानी विंड़होक से भारत से गए एक विशेष विमान से पहले ग्वालियर लाया गया और वहां से उन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए कुनो भेजा गया। ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन चीतो की अगवानी की। उल्लेखनीय है कि भारत में चीते पांचवी दशक से ही विलुप्त हो गए थे और तब से ही देश में फिर से चीते आबाद करने के उपाय किए जा रहे थे जिनमें अब सफलता मिली है। केंद्र सरकार की नामीबिया और दक्षिणी अफ्रीका सरकार से चीतो को भारत लाने के संबंध में लंबी बातचीत हुई और उसी के बाद अंततः आठ चीते भारत भेजे जाने पर सहमति बनी थी।

पिंजरों को हेलीकॉप्टर से कूनो राष्ट्रीय उद्यान ले जाया गया
इसके पहले नामीबिया से कल विशेष विमान से आठ चीतों को लेकर एक विमान ने उड़ान भरी थी, जो सुबह ग्वालियर के विमानतल पर उतरा। विमानतल पर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विशेष विमान में सवार चीतों के साथ आए विशेष दल की अगवानी की। श्री सिंधिया की मौजूदगी में ही विशेष पिंजरों को विमान से उतारकर हेलीकॉप्टर में रखा गया, जिनमें चीते थे। इन पिंजरों को हेलीकॉप्टर से कूनो राष्ट्रीय उद्यान ले जाया गया। ये चीते श्री मोदी के कूनो पहुंचने के पहले ही वहा पहुंच चुके थे। कुनो में प्रधानमंत्री ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान में औपचारिक तौर पर विमुक्त किया। नामीबिया से लाये आठ में से तीन को श्री मोदी ने बाड़े में छोड़ा। इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित रहे।
1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया , लेकिन उनके पुनर्वास के लिए ठोस प्रयास नहीं हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर कहा कि दुर्भाग्य से 1952 में ही देश से चीते विलुप्त घाेषित कर दिया गया, लेकिन दशकों तक उनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए। दशकों बाद भारत में चीते बसाने के लिए सहयोग करने पर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नामीबिया को धन्यवाद भी दिया। इस दौरान अपने संदेश में श्री मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत काल में हमने अपनी विरासत पर गर्व करने और गुलामी की मानसिकता से खुद को मुक्त करने के संकल्प को दोहराया है। पिछली सदियों में प्रकृति के दोहन को आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था। देश में आखिरी बचे तीन चीतों का भी शिकार कर लिया गया। देश का दुर्भाग्य रहा कि 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया, लेकिन दशकों तक उनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए।
सरकार ने काफी मेहनत की
प्रधानमंत्री ने चीतों की वापसी के लिए किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि राजनीतिक दृष्टि से जिस विषय को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती, उस पर भी सरकार ने काफी मेहनत की। देश के वैज्ञानिकों ने लंबा शोध किया। टीमें नामीबिया गईं। कई सर्वे हुए, उसके बाद कुनो को चुना गया। आज उस मेहनत का परिणाम सामने आया है। श्री मोदी ने कहा कि भारत में प्रकृति, पर्यावरण, पशु और पक्षी सिर्फ सुरक्षा का नहीं, बल्कि हमारी आध्यात्मिकता और संवेदनशीलता का भी आधार हैं। हम मानते हैं कि संसार में जो भी जड़-चेतन है, ईश्वर का स्वरूप है। हम पशु-पक्षियों के लिए भी अन्न का हिस्सा रखते हैं और ये हमें बचपन से सिखाया जाता है। ऐसे में अगर किसी पूरी प्रजाति का ही अस्तित्व खत्म हो जाए, तो ये हमें कैसे स्वीकार हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले सालों में बच्चों को इस विडंबना से नहीं गुजरना पड़ेगा कि जिस चीते के बारे में वे पढ़-पढ़ कर बड़े हुए हैं, उसे वे देख ही नहीं पाएं।
अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिक तंत्र आपस में विरोधाभासी नहीं
श्री मोदी ने कहा कि इक्कीसवीं सदी में तेजी से उभरते भारत ने दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिक तंत्र आपस में विरोधाभासी नहीं हैं। पर्यावरण की रक्षा के साथ देश की प्रगति भी हो सकती है,ये भारत ने दिखा दिया है। वर्ष 2014 के बाद से देश में 250 नए वन संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं। गुजरात के एशियाई शेरों, असम के एक सींग वाले गेंडों और हाथियों की संख्या में काफी इजाफा दर्ज हुआ है। उन्होंने कहा कि देश में वेटलैंड का भी विस्तार हुआ है। देश की 75 वेटलैंड साइट को ‘रामसर साइट्स’ के रूप में घोषित किया गया है और इनमें 26 पिछले चार वर्षों में जोड़ी गयी हैं। देश के इन प्रयासों का प्रभाव आने वाली सदियों तक दिखेगा और प्रगति का नया मार्ग प्रशस्त होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

















