राह तकता है उजाला उसका जो अँधेरे में भी रस्ता देखे

chambal
सुबह के समय सूर्य की रोशनी में चमक बिखेरती चंबल नदी। फोटो अखिलेश कुमार

मधु “मधुमन” (कवयित्री)

कोई मुश्किल में भी मौक़ा देखे
कोई मौक़े में भी लोचा देखे

ख़ुश नहीं पा के कोई दरिया भी
कोई क़तरे में भी दरिया देखे

बात तो सिर्फ़ नज़रिए की है
जैसा सोचे कोई वैसा देखे

राह तकता है उजाला उसका
जो अँधेरे में भी रस्ता देखे

जिसको दिखती हैं सभी में कमियाँ
उसको बोलो ज़रा शीशा देखे

वो नज़र मुझको अता कर मौला
जो हर इक शय में ही अच्छा देखे

कौन गिरते को उठाता है यहाँ
हर कोई सिर्फ़ तमाशा देखे

घुट के जीना भी कोई जीना है
ऐसे जीओ कि ज़माना देखे

हर शजर की ये तमन्ना है कि वो
अपनी हर शाख़ को हँसता देखे

उम्र भर माँ इसी उलझन में रही
घर को देखे कि वो सपना देखे

ज़िंदगी ख़्वाब है तो फिर ‘मधुमन ‘
ख़्वाब में ख़्वाब कोई क्या देखे

मधु मधुमन

लोचा-problem

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