ज़ख़्म ऐसा दिया मुहब्बत ने। दिल पे उसका निशान बाक़ी है।।

shakoor anwar 00
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

दिल में अब भी गुमान बाक़ी है।
कोई तो मेहरबान बाक़ी है।।
*
तीर बाक़ी कमान बाक़ी है।
फिर निशाने पे जान बाक़ी है।।
*
रसनो दार* की तमन्ना क्यूॅं।
क्या कोई इम्तेहान बाक़ी है।।
*
ज़ख़्म ऐसा दिया मुहब्बत ने।
दिल पे उसका निशान बाक़ी है।।
*
तुम जिसे सायबान* कहते हो।
बस यही आसमान बाक़ी है।।
*
बस उसी की तरफ़ चले चलिए।
शहर ए दिल* में अमान बाक़ी है।।
*
कौन फ़रहाद नहर खोदेगा।
अब तो बस दास्तान बाक़ी है।।
*
नाम ओ नामूस* हम बचा न सके।
टूटी फूटी ज़ुबान बाक़ी है।।
*
फ़ासला ख़त्म क्यूँ नहीं होता।
जो अभी दरमियान बाक़ी है।।
*
हम सफ़र कोई भी नहीं “अनवर”।
दूर तक आसमान बाक़ी है।।
*

रसनो दार* फाॅंसी का फंदा और सूली
सायबान* छप्पर
शहर ए दिल* प्रेम नगर
नामो नामूस*नाम और इज़्ज़त
ज़ुबान* भाषा

शकूर अनवर
9460851271

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