
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
जुस्तजू ने दिए सराब मुझे।
जिंदगी भर मिले हैं ख़्वाब मुझे।।
*
दशतो सहरा कभी कभी जंगल।
हर क़दम पर मिले अज़ाब मुझे।।
*
ज़िंदगी तो सवाल करती रही।
सिर्फ़ देने पड़े जवाब मुझे।।
*
मैं रहा दीन का न दुनिया का।
शायरी ने किया ख़राब मुझे।।
*
अब तो खाने लगे दरो दीवार।
अब तो पीने लगी शराब मुझे।।
*
इन रिसालों में क्या पढूॅं “अनवर”।
अपने चेहरे की दे किताब मुझे।।
”
जुस्तजू* तलाश
सराब*मरीचिका
अजाब* कष्ट पीड़ाएं
दीन का* मजहबी
रिसालों* पत्रिकाओं
शकूर अनवर
Advertisement