ये ज़ालिम बर्फ़ पिघलेगी जतन से। ज़रा सी आग तो सुलगाओ तुम भी।।

shakoor anwar 01
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मज़ा तूफ़ान का कुछ पाओ तुम भी।
भॅंवर से नाव को टकराओ तुम भी।।
*
निशाने मंज़िले मक़सूद* बनकर।
किसी को रास्ता दिखलाओ तुम भी।।
*
ज़फ़रयाबी मुक़द्दर है तुम्हारा।
कोई परचम* कहीं लहराओ तुम भी।।
*
ये ज़ालिम बर्फ़ पिघलेगी जतन से।
ज़रा सी आग तो सुलगाओ तुम भी।।
*
मुहब्बत की हदें कुछ हमने तोड़ीं।
कुछ अपने आप को समझाओ तुम भी।।
*
नज़ारे दूर तक फैले हुए हैं।
निगाहों को कहीं ठहराओ तुम भी।।
*
रिवायत* है यही दुनिया की “अनवर”।
वफ़ा की राह में मिट जाओ तुम भी।।
*

निशाने मंज़िले मक़सूद* लक्ष्य का चिन्ह
ज़फ़रयाबी* विजयी होना
परचम*ध्वज
रिवायत* परंपरा

शकूर अनवर

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