भूख ने हमको सावन का अंधा किया। चाॅंद रोटी सितारे निवाले लगे।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

ख़ूबसूरत झरोखों में जाले लगे।
कैसे-कैसे मकानों में ताले लगे।।
*
हमने देखें हैं इतने ॲंधेरे यहाॅं।
जगमगाते हुए दिन भी काले लगे।।
*
लो सफ़र अपना सूरज ने पूरा किया।
अपनी मंज़िल पे सारे उजाले लगे।।
*
मस्जिदें क्यूॅं उदासी का मस्कन* हुईं।
सहमे- सहमे हुए क्यूॅं शिवाले लगे।।
*
भूख ने हमको सावन का अंधा किया।
चाॅंद रोटी सितारे निवाले लगे।।
*
देखने में तो “अनवर” सभी राहबर*।
सीधे सादे लगे भोले भाले लगे।।
*

मस्कन* निवास
राहबार* मार्ग दर्शक

शकूर अनवर

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments