ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
ख़ूबसूरत झरोखों में जाले लगे।
कैसे-कैसे मकानों में ताले लगे।।
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हमने देखें हैं इतने ॲंधेरे यहाॅं।
जगमगाते हुए दिन भी काले लगे।।
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लो सफ़र अपना सूरज ने पूरा किया।
अपनी मंज़िल पे सारे उजाले लगे।।
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मस्जिदें क्यूॅं उदासी का मस्कन* हुईं।
सहमे- सहमे हुए क्यूॅं शिवाले लगे।।
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भूख ने हमको सावन का अंधा किया।
चाॅंद रोटी सितारे निवाले लगे।।
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देखने में तो “अनवर” सभी राहबर*।
सीधे सादे लगे भोले भाले लगे।।
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मस्कन* निवास
राहबार* मार्ग दर्शक
शकूर अनवर
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