-विष्णु देव मंडल-

(तमिलनाडु के स्वतंत्र पत्रकार)
चेन्नई। तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी अपना वजूद स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। भाजपा तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष अन्नामलाई और डीएमके के नेताओं के बीच आरोप और प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। जहां भाजपा केंद्रीय योजनाओं की चर्चा करते हुए तमिलनाडु सरकार के विफलताओं को आमजन के समक्ष प्रस्तुत करना चाह रही हैं, वहीं डीएमके और उनके कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर और नीति पर जमकर हल्ला बोल रहे हैं। अब तक दोनों पक्षों का वाकयुद्ध अब हिंसा में तब्दील होने लगा है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बिल्कुल उचित नहीं है!
मालूम हो कि द्रमुक तूतूकुड़ी जिला अध्यक्ष और समाज कल्याण मंत्री गीता जीवन ने बुधवार को आयोजित क्रिसमस समारोह में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई पर कई राजनीतिक प्रहार किए थे। उन्होंने मंच से डीएमके कार्यकर्ताओं को आव्हान करते हुए कहा था कि हम इशारा करेंगे तो भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष अन्नामलाई सड़क पर चलने के काबिल नहीं रह पाएंगे।
जवाब में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष शशि कला पुष्पा ने गीता जीवन पर पलटवार करते हुए कहा की वह घर से निकलेंगें तो अपने पैरों पर चलने लायक नही रहेंगे। बयान के बाद शशिकला पुष्पा नागरकोइल चली गईं। उनके इस बयान के बाद गुरूवार को डीएमके कार्यकर्ताओं ने उनके आवास पर हमला कर तोड़ फोड़ की। उनकी कार और अन्य कीमती चीजों को भी नुकसान पहुंचाया।
भाजपा राज्य ईकाई ने इस हमले को लोकतंत्र और संविधान पर हमला करार देते हुए द्रमुक सरकार के खिलाफ राज्य में विरोध मार्च निकालने की योजना बनाई है। भाजपा नेताओं का कहना है कि हमेशा लोकतंत्र और सहिष्णुता की बात करने वाले द्रमुक के नेता सरकार विरोधी पार्टी के नेताओं के ऊपर हमला करवा रहे हैं। पुलिस भी भाजपा नेताओं को सुरक्षा देने में नाकामयाब है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पुलिस ने डीएमके के 3 पार्षदों समेत 13 डीएमके कार्यकर्ताओं को शशि कला पुष्पा के घर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया है।
यहां उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय जनता पार्टी तमिलनाडु में अपने विस्तार के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है। पार्टी की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष अन्नामलाई समेत भाजपा कार्यकर्ता पूरे राज्य में बीजेपी के कमल खिलाने की फिराक में हैं जबकि मौजूदा डीएमके सरकार भाजपा को तमिलनाडु में रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन राजनीतिक बयान बाजी से इतर राजनीतिक हिंसा स्वस्थ लोकतंत्र और संविधान के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है!