नीतीश कुमार को पदयात्रा का कितना मिलेगा लाभ !

अगर 2025 का चुनाव महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेगी तो फिर नीतीश कुमार बिहार में विश्वास यात्रा क्यों निकाल रहे हैं। महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार जिस तरह दिल्ली में विपक्षी नेताओं से मिले थे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मिले थे उससे कयास लगाया जा रहा था कि नीतीश कुमार निश्चित रूप से केंद्र में जाएंगे

-विष्णु देव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
लोकतंत्र में जनता से सीधे संवाद का जरिया है राजनीतिक पदयात्रा यह आज से नहीं, सदियों से चली आ रही है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से मुल्क को आजाद कराने के लिए पदयात्राएं की तो पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी, दिवंगत राजीव गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, चंद्रबाबू नायडू, राहुल गांधी, नीतीश कुमार सरीखे बहुतेरे नेता अब तक पदयात्रा कर चुके हैं। वैसे गांधीजी ने देश के आजादी के लिए पदयात्रा की थी लेकिन अब पदयात्रा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हो रही हैं।
बहरहाल देश में राजनीतिक पद यात्रा का दौर चल रहा है जहां राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं, वही भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में मौजूदा गहलोत सरकार के खिलाफ जन आक्रोश यात्रा निकाल रही है। बिहार में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जनसुराज यात्रा पर हैं, वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनविश्वास यात्रा निकालने की योजना बना रहे हैं। नीतिश की यह यात्रा जनवरी या फरवरी में निकालने की योजना है। वैसे तो नीतीश कुमार का इन राजनीतिक यात्राओं से बहुत ही गहरा नाता है। वह लगभग 15 यात्राएं कर चुके हैं। जब उन्हें लगता है कि लोकप्रियता घट रही है तो वह बिहार जनता के मूड समझने के लिए यात्रा पर निकल जाते हैं। हालांकि नीतीश कुमार ने पूर्व में जो भी यात्रा की हैं वह चुनाव के दृष्टिकोण से ही करते रहे हैं। मसलन चुनाव से पहले या फिर चुनाव जीतने के बाद।
लेकिन इस बार जन विश्वास यात्रा उस वक्त निकाल रहे हैं जबकि बिहार में कोई चुनाव नहीं होने वाला है। वह सूबे के मुख्यमंत्री हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ जन समर्थन दिया था लेकिन पूर्व की भांति जनसमर्थन का अपमान करते हुए नितिश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बना ली हैं। जनता के साथ विश्वासघात करने के बाद बिहार के लोगों के बीच विश्वास यात्रा निकालना कितना कारगर होगा वह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन यात्रा निकालने तैयारी चल रही है।
बिहार की राजनीति में या फिर जनता दल यूनाइटेड में नीतीश कुमार पर अविश्वास बढा है और जनता में भी खासी नाराजगी है। नीतीश कुमार की पलटीमार राजनीति से आमजन में अविश्वास के भाव बढ़ गए हैं। यही वजह है कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद तीन उपचुनाव में माकूल समाजिक समीकरण के बावजूद महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा।
ऐसे में यह प्रतीत हो रहा है कि बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने से उनका आधार वोट कोईरी -कुर्मी साथ नहीं है। पार्टी में संसदीय समिति के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा तेजस्वी यादव को उतराधिकारी घोषित करने से नाराज चल रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी खामोश हैं। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता ऊहापोह की स्थिति में हैं। बिहार की कानून व्यवस्था चरमराई हुई है। शराबबंदी फेल हो चुकी है। सहयोगी दल में एकजुटता का अभाव है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह बार-बार यह कहते पाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार को बिहार कीे गद्दी छोड़ कर दिल्ली की गद्दी के लिए काम करना चाहिए। राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकर्ता शीघ्र तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन नीतीश कुमार आगामी 2025 में तेजस्वी यादव के अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कह कर राष्ट्रीय जनता दल को इंतजार करने के लिए छोड़ दिया है।
यहां उल्लेखनीय है की चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जो बिहार में जन सुराज यात्रा पर निकले हुए हैं बार-बार कहते पाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलकर भाजपा के साथ जा सकते हैं। उनका आरोप है कि यदि भाजपा और जदयू के बीच तलाक हो चुका है तो फिर जदयू के सांसद पत्रकार हरिवंश किस आधार पर राज्यसभा के उपसभापति बने हुए हैं? प्रशांत किशोर का यह कहना है कि नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं क्योंकि उनके लिए भाजपा का दरवाजा अभी तक बंद नहीं हुआ है।
यहां गौरतलब है कि अगर 2025 का चुनाव महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेगी तो फिर नीतीश कुमार बिहार में विश्वास यात्रा क्यों निकाल रहे हैं। महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार जिस तरह दिल्ली में विपक्षी नेताओं से मिले थे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मिले थे उससे कयास लगाया जा रहा था कि नीतीश कुमार निश्चित रूप से केंद्र में जाएंगे। लेकिन 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर नीतीश ने अटल जी समेत भाजपा के साथ सरकार में बेहतर काम करने की बातें कह कर सहयोगी खेमे को भी संशय में डाल दिया है। सूत्र बताते हैं कि यदि नीतीश कुमार का विश्वास यात्रा को बिहार में मुकम्मल रिस्पांस नहीं मिला तो वह एक बार फिर पलटी मार सकते हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments