-मनु वाशिष्ठ-

पुराने रीति रिवाजों, मान्यताओं का समाज को जोड़े रखने में बड़ा योगदान रहा है। अभी अभी गणगौर का त्यौहार निकला था, बहू लीना और बेटी अनु दोनों को ही फोन पर कहानी सुना कर चुकी तो समझाया कि #बायना निकाल देना, फिर कुछ करना। लॉक डाउन की वजह से घर में ही थीं, तो उनको इस बारे में बताने लगी, मुझे लगा जैसे इन दोनों बच्चियों को बायने के बारे में ज्यादा नहीं पता तो ऐसी ही और भी बहू बेटियां होंगी जो नहीं जानती होंगी, इसलिए सोचा आप सबको भी इसके महत्व के बारे में बताऊं।
#बायना शब्द शहरी लोग भले ही ना जानते हों, लेकिन जिनकी जरा सी भी जड़े गांव से जुड़ी होंगी, वे अवश्य जानते समझते होंगे। खासतौर पर उत्तरी भारत के लोग। #बायना एक ऐसा रिवाज है जिसमें शादी के वक्त बेटी के विदा होकर ससुराल जाते समय, ससुराल से वापिस मायके आते समय, भात भरने के बाद बहन के यहां से आते वक्त एक डलिया (बोईया या टोकरी) अवश्य रखी जाती थी, जिसमें मैदा की छाक (फीकी, नमकीन या चासनी पगी गोल-गोल मट्ठी जिस पर कई डिजाइन भी अंकित होते थे) कई बार, पूरी और मिठाई भी रखी जाती है। बेटी के ससुराल, मायके या भात देने के बाद घर लौटने पर, गांव की नाइन ( नाई की पत्नी, पहले घरों में बुलावा देना, चलन चलाना, नेग रीति रिवाज बताना ये नाइन ही करतीं थीं) इन मट्ठी, पूड़ी या मिठाई को पूरे गांव में अपने व्यवहार के हिसाब से बांटती थीं। कई घरों में तौल के अनुसार आधा आधा किलो, तो कई घरों में टुकड़ों में बांटी जाती थी। और इस तरह कभी-कभी तो मीठे मट्ठे का टुकड़ा या एक पूरी या आधी मिठाई ही घर के हिस्से में आती थी, लेकिन यह रिवाज एक संदेश अवश्य देती थी, कि जिस भी बेटी या बेटे का ब्याह हुआ है, यह उसकी खुशी का एहसास है, जिसमें पूरा गांव शामिल है। जो इस परंपरा से परिचित होंगे कभी ना कभी उन्होंने इस बायने के टुकड़े को खाया भी होगा। आज एकल परिवारों में पूरी, मट्ठे, मिठाइयों की कोई कमी नहीं है। तरह-तरह के सुस्वादु चीजों, मिठाइयों से बाजार ही नहीं घर भी भरे पड़े हैं, फिर भी उन बायने के टुकड़ों का स्वाद ही कुछ और था, क्योंकि आज हर चीज की #अति और सरलता प्राप्त हो चुकी है और अति होने पर वह स्वाद कहां मिलता है, जो अतृप्त रहने पर। इसलिए खुशियां भी बायने की तरह छोटे छोटे रूप में मिलती रहनी चाहिए जिससे जीवन में उत्साह बना रहता है।

तीज त्यौहार, कोई भी सौभाग्य पर्व हो तो एक नाम जरूर सुनने में आता है #बायना। जब मैं पति के साथ नौकरी पर चली गई, तो सासू मां करवाचौथ पर अक्सर याद दिला देतीं, बहू बायना निकाल देना। अब मैं भी बच्चों की शादी के बाद कई विशेष पर्वों पर जैसे, संक्रांति, गणगौर, बड़ अमावस्या, करवा चौथ, अहोई अष्टमी आदि त्योहारों पर बायने की याद दिला देती हूं। #बायना, पूजन के बाद खाद्य सामग्री, श्रंगार सामान, मिठाई, कपड़े या पैसे, जो भी अपनी इच्छा अनुसार घर की बहू द्वारा रिश्ते में बड़े, पद मान वालों को ( श्रेष्ठ ब्राह्मण, सास ससुर, जेठ जेठानी, ननद भांजी) को मनस पूज कर दिया जाता है।
_ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान