सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर लागई रोक

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर उच्च न्यायालय के अतिक्रमण हटाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जमीन पर किसी भी तरह के निर्माण या विकास पर रोक लगाकर 50,000 लोगों को रातोंरात नहीं उजाड़ा जा सकता है। मामले को अब 7 फरवरी को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

रेलवे के मुताबिक, जमीन पर 4,365 अतिक्रमणकारी हैं। चार हजार से अधिक परिवारों के लगभग 50,000 लोग इनमें रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह एक साधारण मामला नहीं है। न्यायाधीश एस के कौल और न्यायाधीश ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक मानवीय मुद्दा है और कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की आवश्यकता है। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा प्रस्तुत रेलवे की जरूरतों को भी स्वीकार किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, कॉलिन गोंजाल्विस और सिद्धार्थ लूथरा तथा प्रशांत भूषण ने याचियों और जन सेवा सहयोग समिति के अध्यक्ष सलीम सैफी के माध्यम से उच्च न्यायालय के दिसंबर के आदेश की वैधता पर सवाल उठाया।
याची के वकीलों ने बताया कि जिस जगह को अतिक्रमण बताया जा रहा है वह पट्टे की भूमि थी और कुछ निवासी 50-70 वर्षों से अधिक समय से यहां निवास कर रहे हैं। रेलवे के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि रेलवे को विस्तार के लिए भूमि की आवश्यकता है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल 20 दिसंबर को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की अतिक्रमण की गई जमीन पर निर्माण हटाने का आदेश दिया था। इसमें निर्देश दिया गया था कि अतिक्रमणकारियों को एक सप्ताह का नोटिस दिया जाए, जिसके बाद अतिक्रमणों को तोड़ा जाए।

निवासियों ने अपनी दलील में कहा है कि राज्य उच्च न्यायालय ने इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद आदेश पारित करने में गंभीर गलती की है कि याचिकाकर्ताओं सहित निवासियों के भूमि पर अधिकार के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।

उन्होंने यह भी कहा कि उनके नाम नगरपालिका के रिकॉर्ड में हाउस टैक्स रजिस्टर में दर्ज हैं और वे नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान कर रहे हैं। कई निवासियों का दावा है कि 1947 में विभाजन के दौरान भारत छोड़ने वालों के घर सरकार द्वारा नीलाम किए गए और उनके द्वारा खरीदे गए। बनभूलपुरा में रेलवे की कथित अतिक्रमित 29 एकड़ जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, व्यापारिक प्रतिष्ठान और आवास हैं।

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