ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
भरकर ऑंख में पानी कश्ती।
डूबी एक पुरानी कश्ती।।
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नदिया ने फैलाई बाहें।
लहरों ने पहचानी कश्ती।।
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तट पर बैठा माॅंझी रोए।
डूब गई दीवानी कश्ती।।
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जर्जर हैं जिस्मों के ढाॅंचे।
ख़्वाबों में सुलतानी कश्ती।।
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बीच भॅंवर में ख़ौफ़ नहीं है।
नाच रही मर्दानी कश्ती।।
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पीड़ाओं में जीवन काटा।
ख़त्म हुई इन्सानी कश्ती।।
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जल के अंदर तैर रही है।
ज्ञानी है विज्ञानी कश्ती।।
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माॅंझी और मुसाफ़िर डूबे।
किसकी थी नादानी कश्ती।।
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कौन सुने मॅंझधार में “अनवर”।
तेरी राम कहानी कश्ती।।
शकूर अनवर
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