हमें साँच ने मारा

mahendra neh
महेन्द्र नेह

-महेन्द्र नेह-

(कवि, गीतकार और समालोचक)

साधो, हमें साँच ने मारा।

भभकी आँच, साँच की मन में सारा तन मन जारा।
सोचा था जीतूंगा जग को, खुद के घर में हारा ।।

सच बोला जब नौकरिया में, बाहर गेट निकारा।
घर से जब सड़कों पर आया कूट-कूट अधमारा ।।

सच के घर में घुसा सोच कर भागेगा अँधियारा ।
किन्तु वहाँ भी दिग्गज बैठे सबने पाँव पसारा ।।

पिट-पिट कर नकटा बन बैठा मिला न एक सहारा ।
ऐसी गत बन गई हमारी दिन में दिखते तारा ।।

सदा गर्म रहता हम पर शासन सत्ता का पारा ।
फिर भी नीकी लागे हम को कड़वे सच की कारा ।।

(महेन्द्र नेह की ‘हमें साँच ने मारा’ पद-संग्रह पुस्तक से साभार)

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Neelam Pandey
Neelam Pandey
2 years ago

बहुत खूब