और चलने लगते थे केवल चलने के लिए

photo akhilesh
फोटो अखिलेश कुमार

समय से पार
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-रामस्वरुप दीक्षित-

ram swaroop dixit
रामस्वरूप दीक्षित

प्रेम की झाड़ियों में
दुबके थे
हमारी यादों के खरगोश
जाते ही
झाड़ियों के करीब
वे निकलकर भागने लगे
यहाँ वहाँ
फिर बैठ गए
एक एक कर
एकदम करीब
वैसे ही
जैसे
जैसे कभी तुम बैठा करती थीं
मुझसे सटकर
और
हम ओढ़ लिया करते थे
चुप्पी की
एक मोटी सी चादर
उस चादर के बाहर
फुदकती थीं
न जाने कितनी गौरैयाँ
कुछ पास ही नाचते थे मोर
और एक सरसराहट
गुजर जाती थी चादर को छूती
हम उठते थे
थामे हुए एक दूसरे का हाथ
और चलने लगते थे
केवल चलने के लिए
कहीं जाने के लिए नहीं
हाथों के रास्ते
एक दूसरे में समाते
हम चले जाया करते थे
समय से पार

-रामस्वरुप दीक्षित

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