
-चांद शेरी-

उनको हुस्न शबाब कब देगा
अब झीलों की आब कब देगा
जिनमें खुशबू हो उन्सों-उल्फत की
मौसम ऐसे गुलाब कब देगा
हो गुजर जिसका बंद जेहनों में
वो किरन आफताब कब देगा
हो चुकी दुश्मनी की हद अब तो
दोस्ती बेहिसाब कब देगा
लोग क्यों भूखे पेट सोते हैं कोई
दसका जवाब कब देगा
मुझको खय्याम जैसा इक ‘शेरी’
खूबसूरत खिताब कब देगा.
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