कोई फूल ऐसा नहीं जो न बिखरे। इसी ग़म को लेकर तो रोती है शबनम।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

वही ग़म की सूरत* वही दिल का मातम*।
वही तेरी दुनिया वही इब्ने-आदम*।।
*
हवा भी मुख़ालिफ़ ज़माना भी बरहम*।
लगाता नहीं कोई ज़ख़्मों पे मरहम।।
*
हुकूमत हमारी ही हो सब जहाँ पर।
इसी कशमकश में है सारा ही आलम*।।
*
कोई फूल ऐसा नहीं जो न बिखरे।
इसी ग़म को लेकर तो रोती है शबनम।।
*
हमारी ही हालत बयाॅं कर रहा है।
सलीबों पे लटका हुआ इब्ने-मरियम*।।
*
ज़रा बाज़ आओ ये दार ओ रसन* है।
कहाॅं जा के छेड़ी है तुमने ये सरगम।।
*
लहू रंग लायेगा अपना भी “अनवर”।
सजेगा कभी तो मुहब्बत का परचम।।
*

सूरत* स्थिति
मातम*शोक
इब्ने आदम*आदम का बेटा मनुष्य
मुख़ालिफ़*प्रीतिकूल, विरोधी
बरहम*नाराज़
आलम*दुनिया संसार
इब्ने मरियम*मरियम का बेटा ईसा मसीह
दार ओ रसन*सूली और फाॅंसी का फंदा
परचम* ध्वज झंडा

शकूर अनवर
9460851271

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