
-महेन्द्र नेह-
(कवि, गीतकार और समालोचक)
लो चलो
वो आ गये हैं
पाहुने बादल
उन्हें लेने चलें
ऊँची पहाड़ी पर
जहाँ वे पेड़ की फुनगी से
घुल मिलकर
न जाने कौन-सी
यादें कुरेदे जा रहे हैं
लो चलो
वो आ गये हैं
सांवले बादल
उन्हें कहने चलें
इस बार इतनी
देर क्यों कर दी
तुम्हारी बाट तकते,
जोहते
ये धरा और ये नदी
दोनों की दोनों
सूख कर काँटा हुई हैं
और तुम अब भी
ठिठक कर चल रहे हो ।
(महेंद्र नेह की चयनित कविताएँ पुस्तक से साभार)
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