
◆श्वेत व श्याम◆
-डॉ. रमेश चंद मीणा

जीवन अंतराल को पाटता,
इनका संयोजनात्मक पोत,
जो करते है जीवन -सृजन,
की मधुर संयोजना,
समाहित है भूगोल का,
शत छाया-प्रकाश,
लीपता है ;जीवन का स्याह,
सम्मुख होता है उजास अथाह,
करता है खुरदरी दीवारों को,
समतल ; निष्पक्ष स्पर्श से,
ये हैं;जीवन के दो आयाम,
जो है -दोनों विलोम,
है विचार के दो बिम्ब,
जहाँ छिपा है
जीवन-यात्रा का प्रतिबिम्ब,
सौंदर्य चेतना का सन्निहित सार,
कुरूपता का भी प्रछन्न आधार,
सृष्टि अनन्त का चिर,
आदि व अथाह विस्तार,
सकारात्मक की ओर,
नकारात्मकता का छोर,
अंधेरे से उजाले की ओर,
उजाले से अंधेरे की ओर,
दोनों के बीच घूमती रहती हैं,
जीवन की डोर,
शांति का स्वर,विरोध का चीत्कार,
समवेत साँझा होता है, यहाँ हरेक विचार,
साँझा ही धरातल पर,
प्रस्फुटित होता है, जीवन अंकुर,
पल्लवित- पुष्पित होकर
वह;साँझा संस्कृति-वृक्ष
फैलाता है अपना घनाकार,
जिसकी छाँव में सुस्ताकर
मानवता लेती है आकार
साधता है;जीवन- डगर को,
बांधता है; संतुलन को,
प्रकृति में बुनता है विस्मय
अंधकार का चीर-हरण कर
सृष्टि को करता है प्रकाशमय
होता हैं लोक;अंतर्मन तन्मय,
वस्तुतः यह है क्षितिज सा
जहाँ अंधेरा व उजास
एकाकार होते है त्यों
बंधते है मिलन पाश में
ज्यों अवनी-आकाश
सारा का सारा संसार
श्वेत-श्याम की चादर औढ़कर
झिल-मिल हो रहा रे
निश्चिन्त,निश्चित पूरे पैर पसार।।
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द्वारा-डॉ. रमेश चंद मीणा