
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
आन वाला था शान वाला था।
शहर ए दिल* में मकान वाला था।।
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रतजगो के लिये हवेली थी।
मरतबत* में निशान वाला था।।
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मोम का हो गया मुहब्बत में।
किस क़दर सख़्त जान* वाला था।।
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ख़ुद संभलता नहीं तो क्या करता।
रास्ता ही ढलान वाला था।।
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आ गया वो बुतों* के झाॉंसे में।
जबकि वो ज्ञान ध्यान वाला था।।
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जान रखता था वो हथेली पर।
इसलिये तो जहान वाला था।।
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इतने कम लोग किसकी मैय्यत* है।
क्या ये उर्दू ज़ुबान वाला था।।
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फॅंस गया वो भी जाल में “अनवर”।
जो परिंदा उड़ान वाला था।।
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शहर ए दिल* यानी प्रेम नगर,
मरतबत* रुतबा, स्टेटस,
सख्त जान*मुश्किल से मरने वाला, ढीठ,
बुतों*मूर्तियों प्रेमिकाओं,
मैय्यत*अर्थी,
शकूर अनवर
9460851271

















