ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
हवाओं से बहुत लड़ना पड़ेगा।
समन्दर का सफ़र महॅंगा पड़ेगा।।
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सजालो अपनी दीवारें सजालो।
ग़रीबों का लहू सस्ता पड़ेगा।।
”
चलो सर्पीली* राहों से निकल लें।
ये सीधा रास्ता लम्बा पड़ेगा।।
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अभी उस बे वफ़ा से कुछ न कहना।
वो सबके सामने झूठा पड़ेगा।।
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मेरे उड़ने की कोई हद* नहीं है।
मुझे ये आसमाॅं छोटा पड़ेगा।।
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समन्दर से अगर मिलना है “अनवर”।
नदी के साथ ही बहना पड़ेगा।।
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सर्पीली*टेडी मेढी पगडंडी
हद*सीमा
शकूर अनवर
9460851271
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