ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
पानी में इक राग हवा।
गाये बनकर झाग हवा।।
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दुनिया दारी* त्याग हवा।
अब तो ले बैराग हवा।।
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मन के अंदर पाप छुपा।
जल के अंदर आग हवा।।
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काबा काशी तुझ से दूर।
तेरे अच्छे भाग हवा।।
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डोर नफ़स* की उसके हाथ।
रख़्शे अजल की बाग* हवा।।
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किसका पीतम आया है।
किसके जागे भाग हवा।।
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हमको “अनवर” डसता है।
अंदेशों का नाग हवा।।
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दुनियादारी*सांसारिकता
नफ़स*सांस
रख़्शे अजल* यानी मृत्यु रूपी घोड़ा
बाग*लगाम
शकूर अनवर
9460851271
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