न्हाण मैं भारत जोड़ो यात्रा व डाकण स्वांग राजस्थानी राजशाही टाट बाट का स्वांग आकर्षक का केंद्र रहा

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-न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा का न्हाण का समापन

-दुष्यंत सिंह गहलोत-

dushayant singh gehlot
दुष्यंत सिंह गहलोत

सांगोद। यहां शुक्रवार को राजसी ठाठ-बाठ से निकली बादशाह की सवारी के साथ ही न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा के न्हाण का समापन हुआ। अश्वों पर सवार अमीर उमराव एवं किन्नरों के नृत्य ने बरसों पुरानी संस्कृति को साकार कर दिया। सवारी में स्वांगों ने सामाजिक व राजनीतिक परिपेक्ष पर व्यंग किए तो बच्चों ने महापुरूषों की वेषभूषा धारण करके महापुरूषों की याद को ताजा कर दिया। धार्मिक एवं एतिहासिक तथ्यों पर आधारित स्वांगों ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। न्हाण में परम्परागत संगीत बोल शंकर्या रे, नगीनों म्हारों घुम ग्यों रे, जैसे लोकगीतों की स्वर लहरियां भी लोगों को सुनने को मिली। पारंपरिक लोक गीतों पर स्थानीय युवाओं ने रंग-बिरंगी राजस्थानी पोषाक पहनकर राजस्थानी लोक संस्कृति की यादों को ताजा किया। इससे पूर्व देर शाम साढ़े पांच बजे रंगनाथजी मंदिर से शुरू हुई बादशाह की सवारी पुराना बाजार, खाड़ा, गढ़ चौक होते हुए लक्ष्मीनाथ के चौक में पहुंची। बादशाह की सवारी में भी सवारी मार्ग के मकानों व दुकानों की छतें लोगों से ठसाठस भरी नजर आई।

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न्हाण की सवारी में बरसों बाद बादशाह का बदलाव हुआ। बरसों से बादशाह बनते आ रहे दादा रामबाबू सोनी की जगह उनके पोते आलोक सोनी बादशाह बने। पहली बार बादशाह बने आलोक सोनी को परंपरानुसार पालकी में भ्रमण करवाया गया। सवारी के लक्ष्मीनाथ के चौक में पहुंचने पर स्थानीय कलाकारों ने बादशाह के समक्ष करतबों का प्रदर्शन किया। जादू के खेलों के साथ तलवार निगलना, सिर पर आग जलाकर पानी गर्म करना, जलते अंगारे निगलना व पचास फीट से अधिक उंचाई के खंबे पर धतूरा खाकर गोल-गोल घूमना जैसे करतब दिखाए। बादशाह की सवारी के पूर्व शुक्रवार तड़के भवानी की सवारी निकाली गई। लुहारों के चौक से शुरू हुई सवारी में बिजली की सजावट एवं फूलों से बने विमानों पर मां ब्रह्माणी, भवानी, बजरंगबली, सरस्वती समेत दो दर्जन से अधिक विभिन्न देवी देवताओं की जीवंत झांकियों को लोग एकटक निहारते रहे। भवानी की सवारी पुराना बाजार, गढ़ चौक के चक्कर लगाती हुई मां ब्रह्माणी माता के मंदिर पहुंची। पूरा बाजार भीड़ से अटा रहा। इससे पहले गुरूवार रातभर यहां लुहारों के चौक में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोकनृत्यों के साथ हास्य व्यंग के कार्यक्रमों से रातभर लोगों को बांधे रखा। देर रात परम्परानुसार चाचा बोहरा की सवारी व किन्नर से शादी के प्रसंग का मंचन किया गया। चाचा बोहरा में भी बरसों बाद बदलाव हुआ। चाचा बोहरा बनते आ रहे रामबाबू शर्मा की जगह गिरधर जोशी ने अपने चुटीलेपूर्ण अंदाज में लोगों का खुब मनोरंजन किया। सवारी में हर बार की तरह सबसे आगे भीड़ को हटाने के लिए झाडुओं व क्रिकेट बल्लों से लोगों को मारते युवक, पागल युवक तथा चुड़ेल बनकर लोगों को डराते स्वांग रहे। सुरा का स्वांग एवं ऊंटों पर सवार चारणा-चारणियों के परम्परागत स्वांगों ने लोगों का खुब मनोरंजन किया। रानी लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप, भगत सिंह बने बच्चों ने सबका ध्यान खींचा। आधुनिकता की चकाचौंध में रंगे किन्नरों के नृत्य ने भी लोगों को फिल्मी गीतों पर झूमने को मजबूर कर दिया। बड़ी संख्या में युवक किन्नरों के साथ ठुमके लगाते नजर आए। भारत जोड़ों यात्रा का स्वांग भी आकर्षक रहा।

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