जो साथ चलते थे हर दम वो दूर हटने लगे। बिसात* मेरे ही मुहरे मेरी उलटने लगे।।

more ak
फोटो अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

जो साथ चलते थे हर दम वो दूर हटने लगे।
बिसात* मेरे ही मुहरे मेरी उलटने लगे।।
*
चलो यहाँ से कहीं दूर चल के दम लेंगे।
यहाँ तो रंग में नस्लों में लोग बटने लगे।।
*
बड़ा सुकून* मिला है नये दरख़्तों* से।
पुराने पेड़ तो अपनी जड़ों से हटने लगे।।
*
अभी तो शाम के मंज़र* ने दम नहीं तोड़ा।
अभी से रात के साये हमें झपटने लगे।।
*
सॅंभाल इसको मुजल्लद* बना के रख “अनवर”।
तेरी किताबे-मुहब्बत* के बाब* फटने लगे।।
*

बिसात*शतरंज खेलने के लिये काले सफ़ेद ख़ानों वाला कपड़ा
सुकून*चैन,आराम
दरख़्तों*पेड़ों
मंज़र*दृश्य
मुजल्लद“जिल्द बंधा हुआ
किताबे मुहब्बत*प्रेम रूपी किताब
बाब*अध्याय

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments