
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
तेरी आमद* के तसव्वुर* से बहलता भी रहा।
तू न आया तो ये दिल हिज्र* में जलता भी रहा।।
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ये न सोचा तेरा दीवाना तेरी चाहत में।
कितने तपते हुए अंगारों पे चलता भी रहा।।
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यूॅं तो मिलने के सभी तुझ से भरम टूट गये।
एक अंदेशा* मगर ज़ह्न में पलता भी रहा।।
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हम ॲंधेरों के मुसाफ़िर थे ॲंधेरों में रहे।
क़ाफ़िला चाॅंद-सितारों का निकलता भी रहा।।
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जाने क्यूॅं दूर हुई जाती है मंज़िल मुझ से।
जबकि मैं राह में गिर गिर के सॅंभलता भी रहा।।
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ग़मे-दुनिया* ने मेरा साथ न छोड़ा अब तक।
फिर यही ग़म मेरे अश्आर* में ढलता भी रहा।।
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ये हमीं थे कि कभी ज़ह्र न उगला “अनवर”।
वक़्त का साॅंप हमें रोज़ निगलता भी रहा।।
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आमद*आना आगमन
तसव्वुर*ख़याल
हिज्र*जुदाई वियोग
अंदेशा*वहम आभास
ग़मे-दुनिया*ज़माने भर के दुख
अश्आर* शेरों, काव्य
शकूर अनवर
9460851271