
– विवेक कुमार मिश्र
एक अच्छी चाय
एक शाम के लिए काफी होती है
अच्छी चाय से अभिप्राय कि
चाय पीते पीते चाय को अनुभव करें
चाय रंग में है कि भाप में कि स्वाद में
और जब चाय रंग, स्वाद और भाप से
इस तरह सराबोर हो कि
कुछ और सोचना ही न हो
तब कह उठते हैं कि
क्या चाय बनी है
यह क्या चाय सिर चढ़ बोलती है
चाय का ऐसा जादू चल पड़ता है कि
कुछ और कहने को बचता ही नहीं
चाय ही जोड़ देती है पूर्णता से
संसार से और उस दुनिया से
जिससे हम होते हैं
जिसके साथ राग भरा संसार होता
उस सबसे चाय ऐसे जोड़ देती है कि
कुछ और दिखता ही नहीं
इस तरह चाय अंतिम बूंद तक
अपने रंग स्वाद और संसार में
इस तरह डूबा देती है कि
कुछ और सोचने कहने को नहीं रहता
बस चाय रहती है
और चाय भी इस तरह कि
चाय के अलावा कुछ नहीं…!