कहने को थी अपनी महफ़िल। लोग मगर बेगाने निकले।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

हम ही कुछ दीवाने निकले।
वर्ना लोग सयाने निकले।।
*
उसकी गली में सब दीवाने।
क़िस्मत को चमकाने निकले।।
*
कहने को थी अपनी महफ़िल।
लोग मगर बेगाने निकले।।
*
जिसमें थी आबाद बहारें।
उस दिल में वीराने निकले।।
*
उरयानी* के इस मौसम में।
आप कहाँ शरमाने निकले।।
*
शायद कुछ सन्नाटा टूटे।
हम भी शोर मचाने निकले।।
*
ऐसे भी गुज़री है “अनवर”।
हम घर से मर जाने निकले।।
*

उरयानी*नग्नता

शकूर अनवर
9460851271

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