-मनु वाशिष्ठ-

चूड़ी भी जिद पर आई है, पायल ने शोर मचाया है
अब तू भी आ परदेसी, सावन का महीना आया है
मुझे लगता है जितने गाने चूड़ियों पर लिखे गए हैं उतने शायद किसी और आभूषण पर नहीं। हो भी क्यों नहीं चूड़ियां बिना श्रृंगार अधूरा है। सावन का महीना, हरियाली तीज और नवयुवतियां ही नहीं, नन्हीं बच्ची से लेकर प्रौढ़ा, बुजुर्ग तक, ऐसी भला कौन स्त्री होगी जिसे चूड़ियां न लुभाए। भारतीय चूड़ियों की दीवानगी तो विदेशी युवतियों में भी देखी जा सकती है। पुरातन काल से ही चूड़ियों की परंपरा चली आ रही है। समय, स्थान, कुल या हैसियत के अनुसार थोड़ा अंतर भले ही देखने में अवश्य आता है, लेकिन इससे चूड़ियों की चाहत में कोई फर्क नहीं पड़ता। चूड़ियों पर कान्हा का ये भजन, जिसमें गोपियां कह रही हैं __
कान्हा ने भेष मनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया।
गलियों में शोर मचाया,श्याम चूड़ी बेचने आया।
मनिहारी का रूप धराया, श्याम चूड़ी बेचने आया।
हरी नहीं पहनूं, मैं तो लाल नहीं पहनूं,
मोहे श्याम रंग ही भाया, श्याम चूड़ी बेचने आया।
बचपन में पहने जाने वाले नजरेला (काले मोती के कड़े नजर से बचाने के लिए) से लेकर कलाई में खनकती चूड़ियां, लाल, हरी, पीली और न जाने कितने रंगों में मिलने वाली चूड़ियां, जब किसी युवती महिला के हाथों में सजती हैं, तो किसी का भी मन मोह लेती हैं। चूड़ियां हर परिधान के साथ जंचती है। चाहे जींस टॉप हो, घाघरा-चोली, सलवार सूट हो या इवनिंग गाउन, कभी एक हाथ में ढेर सारी तो कभी दोनों हाथों में भर भर चूड़ियां। ईवनिंग गाउन के साथ मेटल की ब्रेसलेट हो या सिंपल ड्रेस के साथ कड़े, कांच की चूड़ियां मीनाकारी से सजी, या लाख की हीरे की कटिंग वाली सजावट से सजी चूड़ियां। साजन को मनाना हो तो इनकी खनक ही काफी है। चूड़ियो पर यह गाना, लुभाने का अंदाज, आज की लड़कियों के लिए सर्वविदित है__
मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां है,
जरा ठहरो सजन मजबूरियां हैं।
कईयों को चौड़े ब्रेसलेट पसंद है, तो कई को लटकनदार। राजसी ठाठबाट दिखाने के लिए तो सोने, चांदी की रत्न जड़ित नक्काशीदार चूड़ियां तो अलग ही निखार लाती हैं। चांदी और सोना मिश्रित चूड़ियां स्वास्थ्य वर्धक मानी जाती हैं। सौभाग्य के लिए सुहागन स्त्रियां चूड़ियां खरीदने के बाद पहले (मां दुर्गा, पार्वती) को अर्पण कर आशीर्वाद प्राप्त कर पहनें, ऐसा शुभ माना जाता है। चूड़ियों में रंगों का भी महत्व है, उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से हरे रंग की चूड़ियां शादी एवं बच्चे होने के समय अवश्य पहनी जाती हैं, जिन्हें कुवांरी लड़कियां नहीं पहनती हैं। कहीं पर काली चूड़ियां शुभ मानी जाती हैं तो पंजाब के शादी में पहने जाने वाले चूड़ों, राजस्थान के लाख के चूड़ियों की अपनी रंगत है। बंगाली विवाहिताओं की सफेद लाल चूड़ियां सौभाग्य सूचक, देखने में बेहद आकर्षक लगती हैं, तो कहीं पर सीप, हाथी दांत की चूड़ियां शुभ मानी जाती हैं। राजस्थान, गुजरात में आदिवासी अविवाहित स्त्रियां हड्डियों से बनी चूड़ी कोहनी तक व विवाहित महिलाएं कोहनी से ऊपर तक चूड़ियां पहनती हैं। प्रेम की स्वीकृति के लिए, शायद ये गाना ऐसे ही तो नहीं बना __
गोरी हैं कलाइयां,
पहना दे मुझे हरी हरी चूड़ियां।
भारतीय चूड़ियों की दीवानगी देश विदेश, पूरे विश्व में सब कहीं देखी जा सकती है। चूड़ियों की खनक किसी का भी दिल चुराने का अंदाज जानती है, और चुरा भी लेती है। अगर दिल साजन का हो तो, उसका दिल तो चोरी हुआ ही समझो। अब तो आपके भी समझ आ ही गया होगा, जब भी साजन को मनाना हो या खुद को सजाना, रंग बिरंगी चूड़ियों की खनक से कौन बड़ी बात है _
बोले चूड़ियां बोले कंगना,
हाये मैं हो गई तेरी साजना
तेरे बिन जी नइयो लगदा हाए मैं मरजइयां
दिल लै जा, दिल लै जा …
अगर पति देव की नींद उड़ानी हो वो भी रोमांटिक अंदाज में, उसके लिए भी चूड़ियों का सहारा लिया जा सकता है__
बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेगी
तेरी नींद उड़े ते उड़ जाए।
इसकेे साथ ही फाल्गुनी पाठक के इस गाने का जिक्र किए बिना तो बात अधूरी रहेगी जो किसी को भी थिरकने के लिए मजबूर कर देगी __
चूड़ी जो खनकी हाथ में
याद पिया की आने लगी, भीगी भीगी रातों में
चूड़ियां/कंगन पहनाना एक तरह से पुरुषत्व का, स्त्रियों को अपना सहचरी बनाने का प्रतीक भी बन गया। केवल फैशन ही नहीं आर्युवेद के हिसाब से भी सोने की चूड़ियां कंगन, स्त्रियों के लिए स्वास्थ्यवर्धक हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार इसकी खनक से नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त होती है। चाहे जो कारण हों, सुंदरता में चार चांद लगाती हैं चूड़ियां।
तेरे हाथों में पहना के चूड़ियां हो चूड़ियां
तेरे हाथों में पहना के चूड़ियां
कि मौज बंजारा ले गया हाए मौज बंजारा ले गया
अंत में एक बात और पुरुष भी हाथों में ब्रेसलेट कड़े आदि पहनते हैं, राजसी वेशभूषा में भी इनका पर्याप्त स्थान है। लेकिन जब चूड़ियां किसी पुरुष को भेंट की जाती हैं, तो यह उनकी कायरता दर्शाता है, एवं उनके लिए ललकार का प्रतीक बन जाती हैं।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान