ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
जोरो-जफ़ा* है आम वफ़ा किस नज़र में है।
अब किसके दिल में प्यार सुकूँ किसके घर में है।।
”
दिन भर की दौड़ धूप में मशग़ूल* हैं सभी।
ये ज़िंदगी हमारी मुसलसल* सफ़र में है।।
*
मिटने लगे बहार के नक़्शो-निगार* सब।
अब ये चमन हमारा ख़िज़ाँ के असर में है।।
*
इस राहे-कूऐ-यार* में बचकर चलो ज़रा।
इक जादा ए फ़रेब* इसी रहगुज़र में है।।
*
परछाईं उसकी दौड़ती-फिरती है हर तरफ़।
उसका ही अक्स अब यहाँ दीवारो-दर में है।।
*
पहुॅंचाएगा यही तुझे पर्वत के पार भी।
उड़ने का हौसला जो तेरे बालो-पर में है।।
*
सहरा नवर्द* होने से हासिल तो कुछ नहीं।
लेकिन जुनूने-सहरा-नवर्दी* तो सर में है।।
*
आती हैं लग़्ज़िशें* भी ज़ुबानो-बयान में।
इस ऐब का भी होना ज़रूरी हुनर में है।।
*
वो कारवाॅं गया वो मुसाफ़िर चले गये।
उड़ता हुआ ग़ुबार ही “अनवर” नज़र में है।।
*
जोरो-जफ़ा*ज़ुल्म सख़्ती
मशग़ूल*मसरूफ व्यस्त
मुसलसल*लगातार
नक़्शो-निगार*बेलबूटे फूल पत्ती
राहे-कूऐ-यार*प्रेम की गली का रास्ता
जादा ए फ़रेब*धोखे की पगडंडी
सहरा नवर्द*जंगल बयाबान में फिरने वाला
जुनूने-सहरा-नवर्दी*जंगलों में घूमने का शौक जुनून
लग़्जिशें*कमियाँ
शकूर अनवर
9460851271