
-देवेंद्र यादव-

संसद के भीतर शनिवार 26 जुलाई को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सत्ता पक्ष के एक मंत्री को अपनी जेब से हाथ बाहर निकालने को कहा तब सदन में बैठे तमाम सांसद हक्का-बक्का रह गए और अपनी अपनी जेब और हाथों को देखने लगे, क्योंकि ओम बिरला पर विपक्ष के सांसद यह आरोप लगाते दिखाई देते थे की ओम बिरला सत्ता पक्ष के सांसदों को नहीं टोकते हैं।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पर यह आरोप संसद के भीतर लगाया था कि आप हमें तो टोकते हो मगर सत्ता पक्ष को नहीं टोकते हो। शायद ओम बिरला ने 26 जुलाई को सत्ता पक्ष के मंत्री को टोक कर विपक्ष के सांसदों को बताया है कि स्पीकर के तौर पर वह भेदभाव नहीं करते हैं बल्कि निष्पक्ष होकर काम करते हैं।
सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी का नारा डरो मत का असर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला पर भी पड रहा है, या ओम बिरला ने संसद के भीतर सांसदों को जेब से हाथ निकालने की नसीहत देकर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को सावधान किया है।
राहुल गांधी अक्सर अपनी जेब में हाथ डालकर चलते हुए देखे जा सकते हैं। संसद के भीतर इस बार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का अलग ही रूप देखने को मिल रहा है। वह बड़ी ही शालीनता से सभी पार्टियों और निर्दलीय सांसदों को समान बोलने का अवसर दे रहे हैं और उनके सवालों को गंभीरता से सुन रहे हैं। 17वीं लोकसभा की तरह 18वीं लोकसभा में ओम बिरला विपक्ष के सांसदों को ज्यादा टोक भी नहीं रहे हैं।
17वीं लोकसभा में ओम बिरला ने लंबित पड़े विधेयकों को पारित करवा कर इतिहास रचा था मगर 18वीं लोकसभा में ओम बिरला कौन सा इतिहास रचेगे, इस पर सभी की नजर है, क्योंकि इस बार विपक्ष मजबूत है और सत्ता पक्ष भाजपा के पास अपनी 240 सीट हैं।
17वीं लोकसभा में ओम बिरला निर्विरोध स्पीकर बने थे लेकिन इस बार ओम बिरला को विपक्ष ने चुनौती दी थी और वह ध्वनि मत से स्पीकर चुने गए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)