
मेरा सपना…4
-शैलेश पाण्डेय-
एफिल टॉवर के तीसरे लेवल पर आने से पूर्व हम हवाई जहाज से काफी उंचाई से जमीन और समुद्र देख चुके थे इसलिए ज्यादा उंचाई से नीचे देखने का जो भय होता है उसका असर नहीं हुआ। पहले एक बार एफिल टॉवर के घेरे का चक्कर लगाकर देखा कि हमने जो पढ़ा और सुना था वैसा है या नहीं। लेकिन जब कुछ होश आया तब समझे कि जिन अजूबों का जिक्र होता है उसमें एफिल टॉवर को क्यों प्राथमिकता दी जाती है।

जैसा कि सभी जानते हैं इसका निर्माण पेरिस में 1887-1889 में शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर हुआ था। एफिल टॉवर का निर्माण फ्रांसीसी क्रांति की 100वीं वर्षगांठ मनाने और मूलतः 1889 में पेरिस के विश्व मेले के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया के सामने फ्रांस की इंजीनियरिंग उपलब्धियों को प्रदर्शित करना था। तभी से इसे फ्रांस की संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस टॉवर की रचना को देखने के बाद इसके रचनाकार गुस्ताव अइफ़िल को नमन करने की इच्छा हुई। उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। इससे पूर्व जब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का दो साल पहले दौरा किया था तब दिल से महामना मदन मोहन मालवीय को नमन करने की इच्छा हुई थी क्योंकि जिस समय उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय की स्थापना की वह उस दौर में असंभव लक्ष्य था। उसके बाद यह पहला मौका था। एक कॉमर्स और आर्ट्स का स्टूडेण्ट होने के कारण इंजीनियरंग का क ख ग भी नहीं समझता। लेकिन एफिल टॉवर को देखकर यह जरूर सोचता रहा कि इसका निर्माण तो दूर कल्पना करने के लिए ही किसी अद्वितीय प्रतिभा का होना जरूरी है।
एफिल टॉवर पर धीरे-धीरे पर्यटकों की भीड़ बढ़ने लगी थी। हम कभी अलग-अलग जगह से नीचे झांकते कभी सेल्फी और फोटो लेते। एफिल टॉवर से सीन नदी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। दूर दूर तक इमारतों का जाल बिछा था। नीचे ध्यान देने पर फुटबाल के मैदान वाला स्टेडियम भी देखने को मिला। खेल प्रेमी होने के नाते दिल खुश हो गया। वैसे भी फुटबाल फ्रांस का बहुत लोकप्रिय खेल है। हमारे यूरोप दौरे के दौरान यूरो कप का आयोजन भी हो रहा था जो विश्व कप के बाद सबसे लोकप्रिय फुटबाल टूर्नामेंट है। स्पेन इस बार चैंपियन बना है।

एफिल टॉवर के तीसरे लेवल पर कई दूरबीन भी लगाई गई हैं जिससे पेरिस का दूर तक का नजारा देखा जा सकता है। एक बार कोशिश की लेकिन सामान्य आंखों से जैसा मजा नहीं आया। बहुत देर तक मजे करने के बाद टूर मैनेजर के बताए समय के अनुसार वापस नीचे पहुंचने का टाइम होता देख हम आखिरी बार एफिल टॉवर से चारों ओर का नजारा देखते हुए लौटने लगे। दिल थोडा उदास भी था क्योंकि मालूम था कि इस अभूतपूर्व जगह पर दुबारा आने का मौका अब इस जिंदगी में नहीं मिलेगा।
जब नीचे पहुंचे तो हमारे बहुत से टूर साथी नहीं आए थे। इस दौरान हम जहां से मौका मिलता एफिल टॉवर का अवलोकन करते। उसके स्ट्रक्चर के नीचे खड़े होकर उपर तक देखने की भी कोशिश की। फोटो खिंचाई और आसपास का नजारा देखने लगे। कई एकड़ का परिसर बहुत ही व्यवस्थित था। इसमें एक पार्क और पौण्ड भी बना हुआ था जिसमें लोग घूम रहे थे। पौण्ड में बतखें थीं तथा कबूतर और अन्य पक्षी उसी तरह घूम रहे थे जैसे इनसान। कबूतर बड़ी साइज के थे। पहले तो लगा कि कोई अन्य पक्षी है लेकिन ध्यान देने पर वे कबूतर निकले। अपने यहां मिलने वाले कबूतरों से डेढ से दुगनी साइज के थे। इसके बाद हमें मशहूर परफ्यूम फैक्ट्री जाना था जिसके लिए हम बस में सवार हो गए।