
मेरा सपना …3
-शैलेश पाण्डेय-
सात जुलाई 2024 मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। हो भी क्यों नहीं! आखिर एफिल टॉवर जो देखना था। होटल मिलेनियम में सुबह नाश्ता करने डाइनिंग रूम पहुंचे। कई तरह के फल, भांति भांति की ब्रेड, चीज, मख्खन, दूध, कार्नफलेक्स, कॉफी और चाय इत्यादी थे। लोग जमकर नाश्ता कर रहे थे। लेकिन जो भी वस्तु लेनी हो बहुत ही अनुशासन के साथ कतार में आकर। बीच में कोई नहीं आता। यहीं पर स्पेनी युवाओं से हमारी मुलाकात हुई। जो रात को होटल में मस्ती कर रहे थे वही यहां अनुशासित होकर नाश्ता करने में मशगूल थे। हमारे सामने समस्या वेज और नॉन वेज की थी। बेटे ने पहले ही बता दिया था कि अच्छी तरह समझने के बाद ही कोई भी खाद्य पदार्थ लेना। अण्डा तो आपको हर चीज में मिल जाएगा। यूरोपीय लोगों के लिए अण्डा नॉन वेज में नहीं आता।
हमने आश्वस्त होने के बाद सादा ब्रेड को वहीं रखे टोस्टर में भूनने के बाद बटर लगाकर खाया और कॉफी पी। यहां कॉफी और चाय तथा जूस के लिए मशीन लगी थी। पहले तो समझ ही नहीं आया कि कैसे तैयार करें। भीड़ होने की वजह से मशीन पर ज्यादा देर व्यस्त भी नहीं रख सकते थे। आखिर एक वेटर को किसी तरह समझाया कि चीनी, दूध वाली कॉफी चाहिए तो उसने एक्सप्रेसो बनाकर दी। इसके बाद आठ बजे होटल के बाहर बस पर पहुंच गए जहां हमारा परिचय बस कैप्टन रॉबर्ट से कराया गया। रॉबर्ट पोलैण्ड मूल के थे और उन्हें पोलिश के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं आती थी। दिखने में किसी खिलाड़ी जैसे फुर्तीले और नियमों के मामलों में सख्त लेकिन बहुत सहयोगी। वह बस में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते और हमेशा सीट बेल्ट के लिए टोकते थे।

टूर मैनेजर राहुल जाधव ने बस में सवार होने के साथ ही दिन के कार्यक्रम को संक्षेप में समझाने के साथ बता दिया था कि एफिल टॉवर केे थर्ड लेवल तक जाने की इजाजत है लेकिन कई बार यदि कुछ मरम्मत का काम चल रहा हो या अधिक भीड़ हो तो सेकण्ड लेवल तक ही जा सकते हैं। क्योंकि दुनिया भर के पर्यटक आते हैं इसलिए यहां बहुत भीड़ होती है। रविवार का दिन होने की वजह से पयर्टकों की संख्या अधिक होने की अधिक आशंका थी। बस में सफर के दौरान राहुल जाधव रास्ते में जो भी महत्वपूर्ण स्थल आते उनके बारे में बताते जाते। शहर का आर्किटेक्चर सौंदर्य देखने लायक था। इस तरह के सौंदर्य की झलक मैंने दिल्ली में चार दशक पूर्व कनाट प्लेस, लखनऊ में हजरतगंज, पांडिचेरी और बॉम्बे के अंधेरी-बांद्रा इलाकों में देखी थी। लेकिन यहां तो बात ही अलग थी। विशालकाय और कई एकड़ में फैली एकदम मंत्रमुग्ध करने वाली पर्सियन शैली की इमारतें। करीब एक घंटे के बस के सफर के बाद हम एफिल टॉवर के नजदीक पहुँच गए।
यहां बस से उतरने के बाद हमारी नजर पड़ी रोमांस और सरलता के प्रतीक पर। हम चारों तरफ के फोटो लेते हुए पैदल आगे बढ़े और एफिल टॉवर के परिसर में पहुँच गए। उसकी बुलंदी को देखकर अपने छोटेपन का अहसास हुआ लेकिन खुशी इतनी की दिल में नहीं समा पा रही थी। जब तक हमारा एफिल टॉवर पर चढ़ने का नंबर आता तब तक वहीं नीचे अलग-अलग जगह से उसे निहारते रहे। क्योंकि आजकल मोबाइल फोन में ही शानदार कैमरे आ गए और 320 जीबी तक का स्टोरेज आसानी से मिल जाता है तो दनादन फोटो खेंचने और वीडियो बनाने में भी जोर नहीं आता।
राहुल ने कुछ समय बाद आकर बताया कि हम भाग्यशाली हैं जो इस समय ज्यादा भीड़ नहीं है और थर्ड लेवल तक जा सकते हैं। यह सुनकर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था और पहले एक लिफ्ट से सेकण्ड लेवल तक गए फिर वहां से अन्य लिफ्ट में तीसरे लेवल पर। अब हम दुनिया की सबसे ऊँचे स्थलों में से एक पर थे। मुझे तो खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था। मैं और पत्नी एक दूसरे को देखकर बहुत खुश हो रहे थे। बेटा भी खुश था लेकिन वह आमतौर पर अपने इमोशन दर्शाता नहीं है। यह जरूर है कि वह हमें प्रसन्नता से ओतप्रोत देख मन ही मन जरूर खुश हो रहा होगा।