‘100 दिन बाद दूसरे चरण के चुनाव होंगे, तो खर्चें नहीं होंगे कम’

-धीरेन्द्र राहुल-
केन्द्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए गठित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इसके अनुसार दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे। इसके 100 दिन बाद दूसरे चरण में पंचायतों और स्वायत्तशासी संस्थाओं के चुनाव एक साथ होंगे। इन दोनों चरणों के चुनाव की वोटर लिस्ट एक ही होगी।
पिछले 2024 के लोकसभा चुनाव में देश में बारह लाख मतदान केन्द्र बनाए थे और 70 लाख मतदान कर्मियों की तैनाती की गई थी। यानी एक मतदान केन्द्र पर 6 कर्मचारी/ अधिकारी लगाए गए थे।
कोविन्द कमिटी ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि 100 दिन बाद नगर पालिका/ पंचायतों के चुनाव करवाए जाए।
यहां खर्चे का सवाल उठता है?
सौ दिन यानी तीन माह के अंतराल में फिर से टैण्ट ताने जाएंगे। फिर से बसें और ट्रकें अधिगृहित किए जाएंगे। फिर से देश में 13 लाख 57 हजार पोलिंग स्टेशन बनाए जाएंगे और 75 लाख कर्मचारी तैनात किया जाएंगे। तो अनुत्पादक खर्चों में कटौती कहां हुई ?
हमारा सुझाव है कि अगर चुनाव दो चरणों के बजाय एक ही चरण में करवाए जाए तो सिर्फ मतदान केन्द्रों/ईवीएम मशीनों और कर्मचारियों की ही व्यवस्था अलग से करनी पड़ेगी लेकिन इससे अरबों रूपए का खर्च बचेगा।
ऐसा कर सकते हैं कि एक शहरी बूथ पर चार ईवीएम मशीनें लगाई जाए। एक लोकसभा, दूसरी विधानसभा, तीसरी नगरनिगम/ पालिका के वार्ड मेम्बर और चौथी महापौर (अगर कहीं डायरेक्ट ) चुनाव हो तो लगाई जा सकती है।
वहीं ग्रामीण क्षेत्र में जिला परिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य, सरपंच और वार्ड मेम्बर के लिए अलग मशीनें लगाई जा सकती हैं।
मतदाता के हाथ में एक ही बार स्याही लगाई जाएगी और वह अलग अलग मशीनों पर अलग उम्मीदवारों को वोट देता हुआ निकल जाएगा।
अगर ये संभव न हो तो एक ही पोलिंग स्टेशन पर बने बूथों पर ही दो दिन या तीन दिन में दोनों चरण का मतदान संपन्न करवाया जा सकता है। इसमें मतदानकर्मी और सुरक्षा बल के जवान वहीं रहेंगे। सिर्फ ईवीएम मशीनों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी।
लोकसभा और विधानसभा का मतदान खत्म होने के बाद ईवीएम मशीनें सील कर जिला मुख्यालय पर भेज दी जाए। इसके लिए अलग से स्टाफ तैनात करना पड़ेगा।
मतदान टोली वहीं रूके और अगले दिन नगर निगम/ पालिकाओं या पंचायतों के मतदान संपन्न करवाकर ईवीएम मशीनों को सील कर लौटें।
अगर ऐसा करते हैं तो देश के प्रख्यात समाजवादी नेता स्वर्गीय मधु लिमए की चुनावी महाकुंभ की संकल्पना साकार हो सकती है। मधु लिमये संविधान और संसदीय परम्पराओं के मर्मज्ञ थे।
कोटा की जनाधिकार परिषद ने एक बार संबोधन के लिए उन्हें कोटा बुलाया था।भारतेन्दु समिति सभागार में उनका दिया भाषण मुझे आज तक याद है। उन्होंने कहा था कि हमारे देश में हर समय कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। कभी लोकसभा तो कभी विधान सभा तो कभी जिला परिषद तो कभी पंचायत समिति तो कभी सरपंच और प्रधान के चुनाव चल रहे होते हैं। अगर इनसे राहत मिलती तो उपचुनाव चल रहे होते हैं।
हमारी सरकारी मिशनरी अपना सारा कामधाम छोड़कर चुनाव करवाने में ही लगी रहती है। अरबों रूपया इस अनुत्पादक कवायद में खर्च हो जाता है।
उन्होंने कहा कि हमारे यहां तो कुंभ की परम्परा रही है। फिर क्यों नहीं हर पांच साल में एक बार चुनाव का महाकुंभ आयोजित किया जाए। क्यों नहीं लोकसभा, विधानसभा, जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत के चुनाव एक साथ करवा लिए जाते। पार्टियों को भी सुविधा रहेगी कि योग्यता के हिसाब से वे लोक सभा से लेकर ग्राम पंचायत के टिकट बांट सकेंगे।
यह नई व्यवस्था देश और लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाली होगी। अरबों खरबों के व्यवस्थागत खर्च से राहत दिलाने वाली होगी। मतदान के लिए मशीनों का इस्तेमाल कर हमने अरबों रूपए की स्टेशनरी बचाई। अब वक्त आ गया है अनुत्पादक खर्चों पर भी अंकुश लगाया जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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