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ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर
मैं ख़ुश हूॅं मेरे पास छोटा सा घर है।
मगर बिजलियों की उसी पर नज़र है।।
*
ये सुनसान जंगल ये क्या रह गुज़र* है।
नये हादसों* का तसव्वुर* में डर है।।
*
अभी ज़िंदगी के न तुम ख़्वाब देखो।
अभी मौत की वादियों में सफ़र है।।
*
तेरे पास तेरे वो नफ़रत के पत्थर।
मेरे पास मेरा ये शीशे का घर है।।
*
जहाॅं ज़िंदगी को सुकूॅं था मयस्सर*।
वहाॅं कितनी वहशत* वहाॅं कितना डर है।।
*
कभी वो बुलंदी की हद भी छुएगा।
अभी जिसकी क़द से भी नीची नज़र है।।
*
मेरा राह बर* मुझको लूटेगा “अनवर”।
मैं सब जानता हूॅं मुझे सब ख़बर है।।
*
शकूर अनवर
रहगुज़र*आम रास्ता
हादसों* दुर्घटनाओं
तसव्वुर में*ख़याल में
मयस्सर* मिलना प्राप्त होना
वहशत* खौफ़ डर
राह बर* मार्गदर्शक

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