
हाडोती कि होली कि असली परंपरा न्हाण है—अंबिकादत्त चतुर्वेदी
-सावन कुमार टॉक-

कोटा। होली के उपलक्ष्य में रॉव माधो सिंह म्यूजियम ट्रस्ट एवं हाड़ौती हेरिटेज वॉक्स द्वारा रियासत क़ालीन होली कार्यक्रम आयोजित किया गया। कोटा के गढ पैलेस में आयोजित कार्यक्रम में रियासत क़ालीन रंग बनाने की विधियों के बारे में वनौषधि विशेषज्ञ पृथ्वीपाल सिंह द्वारा श्रोताओं को जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि रियासत काल में सभी त्यौहार प्रकृति के सानिध्य में ही होते थे। पलाश पर उन्होंने हाड़ौती के कवि रघुराज सिंह हाड़ा की कविता केसुला को फूल का उल्लेख करते हुए बताया कि रियासत काल में पलाश और सेमल के फूलों से ही रंग बनते थे और होली का डांडा भी सेमल का ही गड़ता था।

इतिहासकार फ़िरोज़ अहमद ने बताया कि हाड़ौती के इतिहास में महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के काल में नावड़े एवं हाथी कि होली का आयोजन उल्लेखनीय है। नावड़ा की होली का आयोजन चैत्र बुदि 3 को होता था। जिस नावड़े में महाराव उम्मेद सिंह तख़्त पर विराजते थे। उसको चित्रकारों द्वारा सजाया जाता था। दरबार के नावड़े में उनके भाई बंधु और जागीरदार साथ होते थे। दरबार के नावड़े के पीछे अन्य नावों में गायक और संगीत बजाने वाले कलाकार और नक्काल होते थे तथा पलटनों के सिपाही होते थे। नदी के दोनों किनारों पर नगर की जनता यह आयोजन देखने के लिए इकट्ठी रहती थी। दरबार नावड़े से दोनों किनारों पर खड़ी जनता पर फुव्वारे से रंग डालते हुए आगे बढ़ते जाते थे।
हाथियों की होली का कार्यक्रम मिति बुद चेत्र चार को संपन्न होता था। आज के दिन दरबार उम्मेदसिंह जी प्रातः गढ़ में पधारते थे और यहां आकर पतंगी पोशाक और लपेटा धारण कर तैयार होते थे। दिन के 12:00 बजे गढ़ में स्थित चंद्र महल में जाकर अपनी महारानी और रानी जी के संग होली खेलते थे। उसके पश्चात बोलसरी की ड्योढ़ी से बाहर आकर गढ़ के जलेब चौक में आते थे। आज के दिन राज्य के लगभग 10-11 हाथी जो सजे हुए होते थे गढ़ के चौक में खड़े रहते थे। दरबार की तरफ से जिन जागीरदारों, भाई बंधुओं को हाथियों पर बैठने का हुक्म होता था वही हाथियों पर बैठते थे। दरबार अपने ख़ासा हाथी पर बैठते थे उसके बाद सभी दरबारियों को जो हाथियों पर बैठे होते थे उन पर गुलाल गोटा फेंककर होली खेलते थे।
हाडोती के वरिष्ठ साहित्यकार अंबिकादत्त चतुर्वेदी ने बताया कि धुलेंडी की परंपरा शहरी है। हाडोती कि होली कि असली परंपरा न्हाण की परम्परा है। पहले कोटा में भी तेरस का न्हान भरता था जो कारणवश बंद हो गया और अब केवल सांगोद में ही न्हाण मुख्य रूप से मनाया जाता है एवं जो राजस्थान का सबसे बड़ा लोकोत्सव है जिसे बिना प्रशासनिक सहयोग के बिना गाँव के लोग आयोजित करते हैं।
माँगरोल से आये लोक गायक मांगीलाल राणावत ने हाड़ौती की होली पर लोगों को गीत सुनाये जिसमे “एरी भर लाओ री कटोरो केसरिया संग खेलूँगी होली” श्रोताओं ने काफ़ी पसंद किया।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार पुरुषोत्तम पंचोली ने किया।
कोटा के पूर्व राजघराने के महाराव इज़्य राज सिंह एवं महाराज कुमार जयदेव सिंह ने सभी कलाकारों का सम्मान किया एवं कहा की आगामी दिनों में कोटा के एवं बाहर के निवासियों को असली धरोहर से जोड़ा जा सके इसके सकल प्रयास जन सहयोग एवं संस्कृति प्रेमियों के साथ मिलकर किए जाएँगे एवं राव माधो सिंह ट्रस्ट इसमें प्रमुख भागीदारी निभाएगा।
इस अवसर पर हाड़ौती हेरिटेज वॉक्स के सर्वेश हाड़ा, बम्बूलिया महाराजा अभिमन्यु सिंह, इंटेक के संयोजक निखिलेश सेठी आदि गणमान्य लोग मौजूद थे।