
-किशन सनमुखदास भावनानी-
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 यह तीसरा वर्ष है जब दुनिया का करीब-करीब हर देश आर्थिक, स्वास्थ्य, शिक्षा सहित कुछ क्षेत्रों में परेशानियों से मुकाबला कर रहे हैं। पिछले दो वर्षों में तो कुछ समय पूरी दुनिया के लिए विभीषिका से गुजरे जब कोरोना महामारी का प्रलय उमड़ पड़ा था और मानवीय शक्तियों, व्यवस्थाओं, उपायों को ध्वस्त करते हुए अपनी प्रलयकारी तबाही का इतिहास यह महामारी रची गई।

बड़ी मुश्किल से 2022 में हर देश अपनी अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर विकास की गति को पकड़ ही रहा था कि कोरोना महामारी के अन्य वेरिएंट्स ने हमला बोला और अब वैश्विक मंदी की चपेट से दुनिया मुकाबला कर रही है, क्योंकि रिकवरी अर्जित करने में अनेक रोड़े सामने आ रहे हैं। हालात यह है कि वर्ष पूरा होने में सिर्फ़ 3 माह बचे हैं लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका सहित अनेक देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुके हैं। इसके साथ ही दशकों की रिकॉर्ड महंगाई और महंगे होते ब्याज भी चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने 0.75 फ़ीसदी ब्याज दर में बढ़ोतरी की जो इस कदर खतरनाक हो गई कि दुनिया भर की करेंसी डॉलर के आगे बौनी होने लग गई। जिसमें भारतीय रुपया 27 सितंबर 2022 को अपने रिकॉर्ड निचले स्तरपर गिरकर 81.63 पर बंद हुआ।
कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार मंदी के चलते कम हो रही है और आज पिछले 8 माह के सबसे निम्न स्तरपर लुढक कर 80 डालर प्रति बैरल के स्तर से नीचे आया है जो जनवरी 2022 के बाद पहली बार इतने निचले स्तरपर हुआ है परंतु इस गैप को डॉलर के रिकॉर्ड स्तरपर रुपए को लाचार करने के कारण लाभ मिलने में कठिनाई होने को रेखांकित किया जा सकता है, क्योंकि जानकारों के अनुसार रुपया डॉलर के मुकाबले 82 पार जा सकता है।
आयात बिल पर प्रतिकूल असर
डालर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।
भारतीय वस्तुओं की मांग
डॉलर के मुकाबले कमजोर होते रुपए के अनुकूल प्रभाव की करें तो हमें इस आपदा को अवसर में तब्दील करना चाहिए। रुपये के गिरने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे उत्पाद सस्ते होते हैं जिससे भारतीय वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। भारतीय रुपये के लगातार कमजोर होने का एक सीधा लाभ हमें यह दिखाई पड़ रहा है कि भारत का निर्यात लगातार वृद्धि कर रहा है। इससे बाजार में निर्माण सेक्टर में बढ़ोतरी होगी और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
आम उपभोक्ताओं पर महंगाई की मार
डालर के मजबूत होने पर रुपए के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव की तुलना करें तो, रुपये के कमजोर होने से दूसरी तरफ हमारे एक्सपोर्ट्स बेहतर करेंगे, क्योंकि रुपया कमजोर होने से बाहर वालों के लिए हमारा माल सस्ता हो जाता है, लिहाजा हमारा एक्सपोर्ट बढ़ जाएगा, एक्सपोर्ट बढ़ने से फॉरेन एक्सचेंज (विदेशी मुद्रा) की हमारी समस्या तो कम होगी, लेकिन हमारा इंपोर्ट कहीं ज्यादा बढ़ रहा है तो हमारा ट्रेड डेफिसिट (घाटा) बना हुआ है। ट्रेड डेफिसिट होने से हमारा रुपया और कमजोर हो जाएगा, इससे महंगाई बढ़ेगी, गरीब लोगों को इसकी मार ज्यादा झेलनी पड़ेगी, जिनकी नौकरी जा चुकी है उनके लिए मुसीबत और ही बढ़ेगी। कुछ ही समय पहले महंगाई की दर रिकॉर्ड स्तरपर पहुंच गई थी, जिसे कम करने के लिए सरकार ने तेल कंपनियों पर पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने के लिए दबाव बनाया था। खाद्य तेलों के आयात पर टैक्स कम कर राहत दी गई थी और तेल कंपनियों से यह लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए कहा गया था। लेकिन बदले हालात में सरकार के वे सभी प्रयास निष्फल साबित हो सकते हैं। आयात महंगा होने से ये सभी वस्तुएं एक बार फिर महंगी हो सकती हैं और आम उपभोक्ताओं को महंगाई की मार झेलनी पड़ सकती है।
पिछले 7 माह के डालर बनाम रुपए के आंकड़ों के करें तो, तारीख और एक डॉलर का मूल्य रुपये में एक जनवरी 75.43, एक फरवरी, 74.39 एक मार्च, 74.96, एक अप्रैल,76.21, एक मई, 76.09, एक जून, 77.21, एक जुलाई 77.95, एक अगस्त 79.54, 29 अगस्त, 80.10 ,22 सितंबर 80.79, 26 सितंबर, 81.63।
(लेखक कर विशेषज्ञ एवं एडवोकेट हैं)