
-विवेक कुमार मिश्र-

मिट्टी का दीया अंधेरे के सामने उम्मीद का उजियारा रचता है । घोर काली अमावस की रात में एक दीया संघर्ष का जादुई प्रतीक बन सामने आ जाता है …यह उजाला और उम्मीद उन सबके बीच रचता है जो अभाव में है पर जीवन से उमंग से भरे हैं …खेत से खलिहान तक, गांव से बाजार तक दौड़ते पांवों में एक अजीब फुर्ती आ जाती है …अभाव के बीच उल्लास का रंग जम जाता है दाने-दाने में प्राण बसता है इस प्राण से ही महकता है मन और देश का जीवन-जगत। अभाव के बीच भी भारतीय मन उल्लास के त्यौहार अपने तीज – त्यौहार के साथ , मेले के साथ महकता है। दीपावली का त्यौहार सभी के भीतर खुशियों की बारिश लेकर आता है। सब अपने – अपने घर से निकल कर एक एक उम्मीद का दीया दूसरे के यहां भी जला जाते हैं। खुशी और त्यौहार एकाकी नहीं होता …यहां सब सामाजिक हो जाते है। उम्मीद का दीया सबके बीच सामाजिक भाव के साथ चलता है । सामाजिकता का पाठ पर्व ही पढ़ाते है। एक दूसरे की खुशियों में हम सब शामिल होते हैं। दीपावली का त्यौहार सबके बीच खुशी का रंग लेकर आता है। इस खुशी में मनुष्य की सामाजिकता, श्रम, प्रकृति और संस्कृति सब शामिल हो जाते हैं । क्या अमीर क्या गरीब माटी का दीया सबके हिस्से में प्रकाश का उजियारा लेकर आता हैं । भारत की प्रकृति और संस्कृति की समझ के साथ यहां आम आदमी का मन कैसे चलता है, वह अपने जीवन को किस तरह और कैसे देखता है ? घोर अभाव के बीच भी कहां से फूट पड़ता खुशियों का झरना …इसे देखना और जानना हो तो शहर से गांव और गांव से शहर तक एक बारगी बाजार घूम आइये, इस समय जब त्यौहार के साथ मानव प्रकृति भी खिली और खुली हो …यह हमारी प्रकृति और संस्कृति ही है कि घोर काली अमावस की रात को दीये की रोशनी से जगमग करती है …इस तरह अंधेरा हरती है जीवन में उल्लास का वरण करती है …समाज के हर अमीर-गरीब के बीच दीये का प्रकाश उल्लास का रंग भरता है, जीवन में उमंग की बसावट करता है। दीपावली पर अंदर बाहर सब जगह जगमग रोशनी की बात की जाती है यह सब कुछ संभव होता है हमारे भीतर बसे चैतन्य और बदलाव की उम्मीद का भाव लिए मन से … यह उम्मीद की एक दिन अंधेरा छटेगा …यह भाव ही रोशन करता है हर अंधेरे के खिलाफ। मिट्टी के दीये अपनी जगह पर स्थिर रहते हुए ही अंधेरे के विरूद्ध उजाले का जीवन का गीत लिखते रहते हैं । इस गीत में गांव होता है , माटी और माटी को गुंथने वाले हाथ होते है …सब एक दूसरे से जुड़ते हुए उजाले की और उल्लास की कथा कह जाते हैं । इस समय किसी भी बाजार में निकल जाइये सब जगह एक तेज गति और अपने साथ कुछ न कुछ घर ले जाने की परंपरा का मेला लगा है। यह त्यौहार एक तरह से जीवन के चलने का ही मेला हो जाता है । त्यौहार को मनाने के लिए लोगबाग घर से निकलते हैं। खुशियों में रंग भरने के लिए बाजार सजा है …इस बाजार में सब आते हैं। अमीर-गरीब और सब उजाले का दीया लेकर घर की ओर चलते हैं । यहां केवल अपने उजाले की ही बात नहीं है …इस पर्व के साथ सामाजिक उजाला का भाव चलता है । रोशनी में पूरा बाजार , घर और शहर नहा जाता …सामाजिक भाव में सबके मंगल का भाव होता है …हर दीये से उठने वाली लौ प्रकाश के वृत्त का विस्तार ही करती है …इस तरह अंधेरा छट जाता है और काली अमावस की रात उजाले से भर जाती है। देखे तो हमारे किसानी जीवन के छोटे छोटे प्रतीक मिलकर उजाले और उमंग का एक ऐसा कोरस रचते हैं जिससे चारों तरफ उजियारा हो जाता है । बाजार से माटी के दीये , खील बताशे , खेत से निकले सोधे अन्न की खुशी लेकर जब चलते हैं तो बाजार भी चल पड़ता है …रुका हुआ जीवन चल पड़ता है
इस बाजार के चलने में …हम सब चलते हैं । सबके जीवन में यह उम्मीद और उजाला तभी आयेगा जब हम सब समाज के सबसे आखिरी व्यक्ति की आँखों में उम्मीद का सपना और सामाजिकी का पाठ लेकर चलेंगे । यह सब तभी संभव होगा जब हम सब सामाजिक भाव के साथ अपने किसान-मजदूर,श्रमिक शिल्पकार, कुम्हार के काम को मूल्य और महत्व प्रदान करेंगे । इसके लिए बाजार जाना होगा …जो भी देशी उत्पाद है उसे खरीद कर एक दूसरे को मजबूत करते हुए अपनी अर्थ संरचना को भी मजबूत करेंगे और देश के साथ आम आदमी की उम्मीद और उल्लास को भी । यह त्यौहार ही हर तरह के अंधेरे को छांट कर जीवन में उम्मीद का सपना भरता है। शुभ दीपावली पर उल्लसित प्रकृति व संस्कृति के साथ बाजार के बीच खिले आम आदमी के चेहरे के साथ दीपावली मनाएं …इतना उजाला तो लायेंगे ही …एक उम्मीद का दीया जरूर जलाएं।