करवा चौथ पर्व नारी शक्ति और उसकी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण

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करवा चौथ व्रत के लिए करवे सजाता दुकानदार। फोटो अखिलेश कुमार

– किशन भावनानी-

किशन सनमुखदास भावनानी

भारत एक आस्थावान व धर्म प्रधान देश है। यहां हजारों वर्षों से कई मान्यताएं जो कई सदियों पूर्व से हमारे पूर्वजों के द्वारा देखा, महसूस किया या सुना हुआ किस्सा अपनी अगली पीढ़ियों को श्रद्धा पूर्वक सौंपा गया और भारतवर्ष अपने गौरवमई परंपरा को कायम रखते हुए हर त्यौहार को बहुत श्रद्धा भाव उत्साह के साथ मना कर बैंकुठ लोक से देख रहे अपने पूर्वजों का सम्मान बढ़ा रहे हैं। चूंकि 13 अक्टूबर को महिलाएं पूरी निष्ठा, भावना, एकाग्र चित्त से पति की दीर्घायु कामना के लिए व्रत रख करवा चौथ मना रही है इसलिए हम नारी शक्ति को सैल्यूट करेंगे कि, त्याग बलिदान सहनशक्ति की मूर्त नारी हर रिश्ते को बखूबी निभाती है चाहे वह बेटे का हो या फिर बहन पत्नी मां बहू सांस हर रिश्ते को बखूबी निभाती है।

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करवा चौथ का व्रत न केवल एक त्यौहार है बल्कि यह पति-पत्नी के पवित्र रिश्तों का पर्व है। कहने को तो करवा चौथ का त्यौहार एक व्रत है लेकिन यह नारी शक्ति औऱ उसकी क्षमताओं का सवश्रेष्ठ उदहारण हैं। क्योंकि नारी अपने दृढ़ संकल्प से यमराज से भी अपने पति के प्राण ले आती हैं तो फ़िर वह क्या नहीं कर सकती हैं। आधुनिक होते समाज में भी महिलायें अपने पति की दीर्घायु को लेकर सचेत रहती है। इसीलिये वो पति की लम्बी उम्र की कामना के साथ करवा चौथ का व्रत रखना नहीं भूलती है। पत्नी का अपने पति से कितने भी गिले-शिकवे रहें हो मगर करवा चौथ आते-आते सब भूलकर वो एकाग्र चित्त से अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना से व्रत जरूर करती है।
करवा चौथ का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक माना गया है। इस त्योहार में महिलाएं सुबह से व्रत का संकल्प लेते हुए शाम को चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद व्रत तोड़ती हैं। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है और चंद्रमा की पूजा के बाद ही व्रत का समापन होता है। इसी दिन सभी सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए विधि विधान से व्रत रखती हैं। यह निर्जला व्रत महिलाओं के लिए सबसे कठिन व्रत कहा जाता है, रात में चांद को अर्ध्य देकर महिलाएं अपना व्रत संपन्न करती हैं।

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करवा चौथ का व्रत हर सुहाग‍िन स्‍त्री रखती है ताकि उनके पति की लंबी उम्र हो और वह स्‍वस्‍थ रहें।व्रत की यह परंपरा सद‍ियों से चलती आ रही है। कहते हैं क‍ि यह व्रत देवताओं की पत्नियों ने भी रखा था। और तो और महाभारत काल में भी इस व्रत का प्रसंग मिलता है।
अन्य त्योहारों की तरह ही करवा चौथ भी हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और ये त्योहार भारत के हर राज्यों में विभिन्न तरीकों से सेलिब्रेट किया जाता है। थाली सजाने के तरीके से लेकर पूजा पाठ के तरीकों तक, इस त्योहार भारत के अलग अलग राज्यों अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।
करवा चौथ को लेकर कई प्राचीन कथाओं की करें तो वैसे कई प्राचीन कथाएं प्रचलित है। इन्हीं में एक कथा के अनुसार, करवा चौथ व्रत की परंपरा की शुरुआत देवी-देवताओं से समय से ही हुई थी। मान्यता है एक बार देवताओं और दानवों से बीच कई दिनों तक युद्ध हुआ। युद्ध में देवताओं को हार का सामना करना पड़ रहा था। तब सभी देवता ब्रह्मदेव के पास पहुंचे और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने संकट से बचने और दानवों से युद्ध में विजय पाने के लिए देवातओं को अपनी अपनी पत्नियों से व्रत रखने के लिए कहा। ब्रह्मदेव बोले-पत्नियां यदि व्रत रखकर सच्चे मन से उनकी विजय प्राप्ति की प्रार्थना करेगी तो निश्चय ही उन्हें युद्ध में विजय हासिल होगी।

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ब्रह्मदेव का सुझाव पाकर सभी देवताओं की पत्नियों ने पति की प्राण रक्षा और युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए व्रत रखा। यह दिन कार्तिक माह की चतुर्थी का दिन था। पत्नियों ने व्रत रखकर पतियों के लिए विजय प्राप्ति की प्रार्थना की। पत्नियों की प्रार्थना स्वीकार हो गई और देवताओं ने युद्ध में दानवों को हरा दिया। विजय प्राप्ति की सूचना पाकर ही पत्नियों ने व्रत खोला। तब चंद्रोदय हो गया था। तब से ही करवा चौथ मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई।

(लेखक एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी कर विशेषज्ञ, स्तंभकार हैं )

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