
– राधाकृष्ण मंदिर तलवंडी में श्री झालरिया मठ का 25वां गुरुपूर्णिमा रजत महोत्सव एवं भव्य भजन संध्या
कोटा. कोटा. डीडवाना (राजस्थान) स्थित प्राचीन सिद्ध पीठ श्री झालरिया मठ का 25वां दिव्य गुरुपूर्णिमा रजत महोत्सव जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य श्री श्री 1008 स्वामीजी श्री घनश्यामाचार्य जी महाराज के पावन कृपाशीर्वाद से तलवंडी स्थित श्रीराधाकृष्ण मन्दिर, में शनिवार को धूमधाम से मनाया गया। श्री झालरिया पीठ, डीडवाना के स्थानीय हजारों भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से यह महोत्सव भजन संध्या की संगति मे भगवान श्री राधाकृष्ण की सन्निधि में प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम में सर्वप्रथम सभी भक्तों द्वारा पूर्वाचार्यों एवं गुरु महाराज के चित्रपट का पूजन किया गया। श्री झालरिया उत्सव सेवा मण्डल कोटा एवं श्री राधाकृष्ण मन्दिर समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गूरुपूर्णिमा महोत्सव में भगवान श्री राधाकृष्ण का नयानाभिराम श्रृंगार व मंदिर परिसर को फूलों से सुसज्जित किया गया। इस दौरान एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. गोविन्द माहेश्वरी सहित अन्य झालरिया पीठ के भक्तों ने भजनों के माध्यम से गुरु महिमा का बखान किया।
इस वर्ष कोटा में श्री झालरिया पीठ गुरुपूर्णिमा महोत्सव के आयोजन की रजत वर्षगांठ है। कोटा में 1999 में श्री गुरु महाराज के पावन सानिध्य में सर्वप्रथम गुरुपूर्णिमा महोत्सव आयोजित किया गया, जिसके पश्चात विगत 25 वर्षों से प्रति वर्ष श्री झालरिया पीठ, डीडवाना के स्थानीय हजारों भक्तों द्वारा सामूहिक रूप से गुरुपूर्णिमा महोत्सव मनाया जा रहा है।
आपको गुरू ही सद्मार्ग दिखा सकता है
झालरिया पीठाधिपति श्री घनश्यामाचार्य जी महाराज ने कोलकाता से फोन के माध्यम से कोटा में भक्तों को आशीवर्चन दिया। उन्होने कहा कि पहली गुरू मां है। हमारे अंदर शक्ति, सहनशीलता के जो संस्कार हैं, वो सब मां की देन है। आषाढ़ की ही पूर्णिमा को गुरूपूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, क्योंकि यह दिवस वेदव्यास जी का प्राकट्य दिवस है, जो जगतगुरू हैं। दिव्य शक्ति संपन्न गुरू व्यास ने वेदों का पाठ किया, पुराणों को रचा, धर्म का मार्ग बताया। महाराज ने कहा कि गुरू कौन होता है, ये समझने की जरूरत है। दो अक्षर गु व रू मिलकर गुरू बना। गु का अर्थ है अंधकार और रू से तात्पर्य होता है दूर करने वाला। जो हमारा अंधकार दूर करे। अज्ञानता, अभिमान के अंधकार से हमें उजाले की ओर ले जाए, वही गुरू है। हम मोह में उलझे हैं, माया में बंधे हैं, ऐसे में गुरू ही सद्मार्ग दिखा सकता है। सबकुछ अनुकूल होने के बाद हमें परमगुरू भगवान को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि यह कृपा भगवान की दी हुई है। प्रवचन सुने और ग्रहण करते हुए सुधार लाना चाहिए। सेवा की ओर बढ़ना चाहिए। अहंकार को छोड़िए, गुरू की शरणागत हो जाइए। जब तक गुरू की सेवा में रहोगे तब तक बढ़ते रहोगे।
सामूहिक आचार्य अर्चना हुई
श्री झालरिया सेवा मण्डल के सदस्यों ने ‘मैं जनम-जनम का भटका हूं….अब शरण तुम्हारी आया हूं…..‘, सत्संग है ज्ञान सरोवर, संत का सत्कार होना चाहिए,….गुरू राज के चरणों का हम वंदन करते हैं……‘ हम तो तेरी शरण में आए वेंकटेश बालाजी गोविंदा… ‘तुम्ही भक्ति हो, तुम्ही शक्ति हो…..‘, ‘काम में भटका, क्रोध में भटका…..‘, समेत कई भजन प्रस्तुत किए। सुमधुर भजनों की बयार में भक्त इतने मस्त हुए कि भावविभोर होकर थिरकने लगे। सामूहिक आचार्य अर्चना के बाद गुरु आरती हुई एवं प्रसाद वितरण हुआ।