
-द ओपीनियन डेस्क-
सनातन धर्म में माना जाता है कि पितृलोक में पूर्वजों की आत्माएं निवास करती हैं और वे पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी पर उतरती हैं। इसलिए, हर साल पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए श्राद्ध किया जाता हैं। इस पक्ष में विधि विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस साल 10 सितंबर से पितृ पक्ष आरंभ हुए हैं।
पूर्वजों को नियत तिथि पर श्राद्ध कर्म से स्मरण करेंगे
सनातन परंपरा के अनुसार लोग पूर्वजों को नियत तिथि पर श्राद्ध कर्म से स्मरण करेंगे। इसके साथ ही सोलह दिनों तक सभी शुभ कार्य बंद हो जाएंगे। इन दिनों में लोग कपड़ा, सोना, चांदी, भवन, भूमि या वाहन की खरीदी भी नहीं करेंगे। पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शनिवार 10 सितंबर को होगा। जिस तिथि में पितर देव दिवंगत हुए होते है, उसी तिथि पर पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार श्राद्ध कर्म एवं तर्पण किया जाना शास्त्र सम्मत है। 11 सितंबर को प्रतिपदा एकम का श्राद्ध होगा। मातृ नवमीं की तिथि 19 सितंबर को दिवंगत माताओं का श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। वहीं, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है, उनका श्राद्ध कर्म 24 सितंबर को किया जा सकता है। 25 सितंबर को सर्व पितृमोक्ष अमावस्या होने की वजह से ऐसे सभी लोग श्राद्ध कर्म कर सकते हैं, जिन्हें अपने पूर्वजों के निधन की तिथि ज्ञात नहीं है।
25 सितंबर को श्राद्ध पक्ष का समापन होगा।
25 सितंबर को श्राद्ध पक्ष का समापन होगा। आश्विन मास में पंद्रह दिन श्राद्ध के लिए माने गए हैं। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद करने के लिए माना गया है। सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है। जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं। अमावस्या के दिन पितरों को विदाई दी जाती है।
इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है
पुराणों के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर मिलता है और वह पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं। इन दिनों मिले अन्न, जल से पितरों को बल मिलता है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय कर पाते हैं। इन्हीं अन्न जल की शक्ति से वह अपने परिवार के सदस्यों का कल्याण कर पाते हैं। इसलिए पितृपक्ष के दौरान फूल, फल और जल आदि के मिश्रण से तर्पण देने का विशेष महत्व है।
श्राद्ध पक्ष की क्रमवार तिथियां
पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण 10 सितंबर दिन शनिवार, प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 11 सितंबर दिन रविवार, द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण 12 सितंबर दिन सोमवार, तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 13 सितंबर दिन मंगलवार, चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 14 सितंबर दिन बुधवार, पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 15 सितंबर दिन गुरुवार, षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 16 सितंबर दिन शुक्रवार, सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण 17 सितंबर दिन शनिवार, अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 18 सितंबर दिन रविवार महालक्ष्मी हाथी पूजा के साथ, नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 19 सितंबर दिन सोमवार, दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 20 सितंबर दिन मंगलवार, एकादशी का श्राद्ध तर्पण 21 सितंबर दिन बुधवार, द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 22 सितंबर दिन गुरुवार, त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 23 सितंबर दिन शुक्रवार, चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 24 सितंबर दिन शनिवार, अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 25 सितंबर रविवार को पितृमोक्ष अमावस्या के साथ समापन होगा।