
-मनु वाशिष्ठ-

ब्रज क्षेत्र में अगर कोई तर्क की बात करे तो सुनने में आता है_ ज्ञानी, गुमानी, धनी जाओ रे ज्हां से, ज्हां तो राज है बावरे ठाकुर कौ। ब्रज क्षेत्र की तो हर बात निराली है। यहां की मीठी बोली में गालियां भी सुहाड़ी लगती हैं, कहावतें भी मीठी। यहां मीठे पकवान का बहुत महत्व, शौक है, जितनी विविधता मिठाइयों की यहां देखने में आती है कहीं और नहीं। शायद ही कोई होगा जिसने बचपन में रामलीला, हाट, मेले में जलेबी न खाई हो। जलेबी को अंतर्राष्ट्रीय मिठाई कह सकते हैं, गरीब अमीर सबकी पहुंच के अंदर। हो सकता है किसी को यह गरीबों की मिठाई लगती हो, लेकिन इसके दीवाने उत्तर भारत के साथ, बाहर विदेशों (पाकिस्तान, बांग्ला देश, नेपाल, अरब कंट्रीज, ब्रिटेन, अमेरिका और न जाने कहां कहां) तक हैं। एक मीठी कहावत है “जलेबी की तरह सीधा” इसका मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे। उसी जलेबी से जुड़ी, कुछ रोचक मीठी कहावतें, औषधि उपचार, जानकारी शेयर कर रही हूं। उलझनें मीठी भी हो सकती हैं… इसकी मिसाल है जलेबी… और देखिए __
खाय जलेबी बनो दयालु, तहि चीन्हे नर कोई।
तत्पर हाल निहाल करत हैं,रीझत है निज सोई।
इसका मतलब जलेबी खाने से दया, उदारता उत्पन्न होती है। पहचान बनती है और आत्मविश्वास आता है।
और देखिए _
टूटी की नहीं बनी है बूटी, झूठी की नहीं बनी है खूंटी।
फूटी को नहीं बनी है सूठी, रूठी तो बने काली कलूटी।
अर्थात_ जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास टूट जाए उसकी कोई औषधि नहीं है, और जो आदमी बार-बार बदलता है, इनकी एक खूंटी यानि ठिकाना नहीं है। जिसकी किस्मत ही फूटी हो उसका भला सूफी संत भी क्या कर सकते हैं। और स्त्री अगर रूठ जाए तो काली का रूप धारण कर लेती है। अतः इन सब का इलाज जलेबी ही है। हारिए न हिम्मत बिसारिए न राम, साथ ही रोज सुबह जलेबी खाओ, भवसागर से पार लगाओ।
एक सिद्ध अवधूत हुऐ हैं कीनाराम। जिन्होंने थोड़ा बहुत भी सिद्धसंत महात्माओं के बारे में पढ़ा है, वे अघोरसिद्ध कीनाराम की जीवनी से अवश्य परिचित होंगे। वो सिद्ध अवधूत, कीनाराम लिखते हैं_
बिनु देखे बिनु अर्स पर्स बिनु, प्रातः है जलेबी खाए जोई।
तन मन अंतर्मन शुद्ध होवे, वर्ष में निर्धन रहे न कोई।
एक और संत का सुनिए उन्होंने जलेबी का नाता आदिकाल से बताया है, कहते हैं_
पार लगावे चौरासी ते, मत ढूंके चहुं ओर।
अर्थात_ जलेबी का नियमित प्रातः काल सेवन करने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है, जलेबी के अलावा अन्य मिठाइयों की ओर कभी देखे भी नहीं। पांच चीजों (मैदा, पानी, चीनी, घी, अग्नि) से मिलकर बनी जलेबी में पंचतत्व का वास होता है, तथा पंच महादेव, शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है। किसी को यह अतिश्योक्ति लग सकती है, लेकिन ब्रजवासियों को तो पूरा यकीन है। कहते हैं जलेबी की बनावट कुंडलिनी की तरह है (इसे संस्कृत में #सुधा कुंडलिका कहते हैं) और इसको खाने से कुंडलिनी जागृत होती है। इन बातों में कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं, कहावतें तो कहावतें हैं, फिर भी कुछ तो सच्चाई होती ही है। जलेबी दो शब्दों से मिलकर बना है जल + एबी, यानि इसको खाने से जल तत्व के सारे एब / दोष दूर होते हैं। ज्योतिष के अनुसार देशी घी से निर्मित जलेबी दूध खाने से चंद्रमा मजबूत होता है, चंद्रमा मन का कारक है इस तरह मानसिक तनाव में भी जलेबी गुणकारी है। आयुर्वेद चिकित्सा में भी जलेबी को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। दुबले पतले लोगों को प्रातः नित्य जलेबी का सेवन करना चाहिए। त्रिदोष शांत करने के लिए प्रातः दही के साथ, वात दोष में दूध के साथ व कफ दोष में गर्म गर्म चाशनी वाली जलेबी का सेवन गुणकारी है। जलेबी में जल तत्व की अधिकता होती है, और इसको खाने से जल तत्व के दोष, मानसिक विकार, आधासीसी का दर्द, त्रिदोष, पांडुरोग, गुस्सा आदि दूर होकर, आध्यात्मिक दृष्टि, सिद्धि, शक्ति एवं ऊर्जा में वृद्धि कर, स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होने में भी सहायक है। स्व+अधिष्ठान= स्वाधिष्ठान, अर्थात् आत्मा का घर। यह चक्र क्रिएटिविटी का कारक चक्र है, जहां संतति उत्पत्ति के लिए है, वहीं आत्मा से परमात्मा के जुड़ाव की जागृति का भी चक्र है। स्वाधिष्ठान चक्र की जागृति व्यक्तित्व में जागरूकता, स्पष्टता और विकास लाती है।
घूम घमेरी घूम घमेरी,पोरो पोरो भरो है रस।
बता सके तौ बता, नहीं रुपैया निकार दस। शायद इस लोकोक्ति का अर्थ सबको पता होगा और दस रुपए देने की स्थति नहीं आएगी। ब्रज में तो पावन गंगायमुना स्नान और पावन पर्व की तरह दूध जलेबी का नाश्ता भी पावन … जगजाहिर है। जलेबी की गुणों की खान है, इसका वर्णन इतना आसान नहीं, फिलहाल इतना ही, धन्यवाद।
(लेखिका कोटा जंक्शन राजस्थान निवासी हैं)