
मुट्ठी में दुनिया
-मनु वाशिष्ठ-

याद न जाए बीते दिनों की,जाके न आए जो दिन।
दिल क्यों बुलाए उन्हे, दिल क्यों बुलाए …
या, बचपन के दिन भुला न देना …
सही है छोटे नाती पोतों को देख बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं। ये गाने है तो किसी पुरानी फिल्म के, लेकिन बात बिलकुल सही है पुरानी यादें कभी भूलती नहीं हैं। बचपन में गर्मी हों तो छत पर, और सर्दी हों तो पौर (घर के एंट्रेस में कमरे जैसी जगह) में घर के सभी बच्चे दादी/नानी को पलंग पर रजाई में घेर कर बैठ जाते। बहुएं, चाची, ताई, भाभी अपने अपने कैडर के हिसाब से काम काज, जिम्मेदारी, व्यवस्थाएं संभालती। और ये सब स्वतः हस्तांतरित होता रहता। घर के बेटे जैसे ही आठ दस साल के होते, उनको पुरुष बैठक में जाना /सोना शुरू हो जाता और इस तरह बच्चे आगे के जीवन की बुनियादी बातें सीखते। तीन चार पीढ़ियां एक साथ रहतीं थीं सबसे सीखने को मिलता। अब उस की कमी महसूस होती है। सुबह बच्चों की मालिश हो या रात खाने के बाद सब बच्चों के काजल लगाना, बड़ी बूढ़ीयों की जिम्मेदारी होती। काजल के बाद छोटे बच्चों को हथेली पर काजल का पैसा थमा देती। जो सबसे छोटा बच्चा होता उसे दादी नानी के बगल वाली जगह मिलती। उनकी कहानियों में हमेशा राजा रानी अवश्य होते, परियां होतीं, राक्षस होते, रानी की जान किसी तोते में होती आदि आदि। श्रवण, राम, कृष्ण, साहूकार, चोर, देशभक्ति, बहादुरी की न जाने कितनी ही कहानियां अनजाने में बच्चों के मन में संस्कार के बीज रोपित कर देतीं। उनके कहने के तरीके बड़े दिलचस्प होते। इस तरह अनायास ही बच्चों का शब्द ज्ञान बढ़ता रहता। आजकल के बच्चे हैलो! गूगल या हैलो! एलेक्सा, कहकर लोरी भले ही सुन लें, लेकिन दादी नानी के गोद की गर्माहट भला कैसे मिलेगी। अब बच्चे जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी और पता नहीं कितनी प्रकार की भाषाएं बालपन से ही सीख रहे हैं, लेकिन वो अनुभूति/भाव नहीं सीख सकते। किस्से कहानियों की परंपरा तो मानो समाप्त ही होती जा रही है।
मोबाइल से मूक हुए संवाद,
मैसेज पर ही सारी बात, खुशी की चाबी खो गई।
संबंधों में नहीं वो बात,
खोखले हुए, अपनेपन के सूत्र की चाबी खो गई।
बचपन में धौल जमाते,
यार की अधिकार वाली, यारी की वो बात खो गई,
करवटें बदलते पतिपत्नी,
उनके बीच प्यार भरी छुअन, की कहानी खो गई।
सब कुछ हुआ, इंटरनेट से,
अच्छा भी बुरा भी, कमरे में बंद जिंदगानी हो गई।
पासवर्ड भूले अपनेपन के,
महसूस कर सकें, उन जज्बातों की चाबी खो गई।
मुठ्ठी में है सारी दुनिया,लेकिन
दुनिया में नहीं कोई अपना, ये दुनिया अनजानी हो गई।।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ????????????
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान